मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

845-रूपसी बनजारिन


उड़ान
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
साँझ हो गई
बन -बन भटकी
भूखी व प्यासी
रूपसी बंजारिन
पिया ! कद्र न जानी।
2
दीप जलाए
अँधियारे पथ में
दिए उजाले,
सदा हाथ जलाए
पाए दिल पे छाले।
3
आँख  लगी थी
सुनी हूक प्रिया की
सपना टूटा,
निंदिया ऐसी उड़ी
उम्र भर न आई।
4
आहत मन
अगरू गन्ध रोई
मन्त्र  सुबके
उदासी -भरा पर्व
अश्रु का आचमन।
5
प्राण खपाए
बरसों  व्रत -पूजा
करके थके
आरती की  थाली थी
लात मार पटकी।
6
प्राणों में जो था
उसे पा नहीं  सके
द्वार गैर के
कभी जा नहीं सके,
प्रारब्ध में यही लिखा।
7
छलक उठे
रूप -रस -कलश
नदी -सी बही
सींचे निर्मलमना 
अभिशप्त  ही रही।
8
शिथिल तन
रुदन- भरा कंठ
हिचकी उठी
बीनती बरौनियाँ
उम्र खेत से सिला*
9
आठों ही याम
कलह -रतजगा
असुर -पाठ
जीवन, मृत्यु-द्वार
भीख माँगते थका।
10
युगों से जगी
थकान- डूबी प्रिया
अंक में सोई
शिशु-सा भोलापन
अलकों  में बिखरा।
11
जीवन मिला
साँसों का सौरभ भी
तन में घुला
अधरों से जो पिए
नयनों के चषक।
12
तेरी सिसकी
सन्नाटे को चीरती
बर्छी -सी चुभी
कुछ तो ऐसा करूँ
तेरे दुःख मैं वरूँ
(20-11-2018)
-0-
*सिला*
फसल कटने के बाद कुछ अन्न बिखर जाता है। उसे सिला कहते हैं। ज़रूरतमंद खेतों में आकर उसे एकत्र कर लेते हैं।

24 टिप्‍पणियां:

Sudershan Ratnakar ने कहा…

एक से बढ़ कर एक सुंदर ताँका।

नीलाम्बरा.com ने कहा…

हार्दिक बधाई, सुन्दर ताँका लिखे आपने।

nirdesh nidhi ने कहा…

गागर में सागर से

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर सृजन सर।

सहज साहित्य ने कहा…

रत्नाकर दीदी जी,कविता जी,निर्देश और ऋतु जी!आप सबकी सराहना के लिए हृदयतल से आभार!💐💐
रामेश्वर काम्बोज

Satya sharma ने कहा…

बहुत ही सुंदर , भावपूर्ण सृजन
हार्दिक बधाई भैया जी

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut bhavpurn bahut bahut badhai kamboj ji

सहज साहित्य ने कहा…

सत्या शर्मा जी और डॉ भावना जी
आपकी सराहना के लिए अनुगृहीत हूँ।

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण तांका।
हार्दिक बधाई भाईसाहब।

Jyotsana pradeep ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सृजन...,.हार्दिक बधाई आपको !

भावना सक्सैना ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण तांका।

Dr. Purva Sharma ने कहा…

सभी ताँका एक से बढ़कर एक .......अद्भूत...
हृदय की गहराइयों से नमन

Anita Manda ने कहा…

बहुत ही सुंदर रूपसी बंजारिन
सभी ताँका रचनाएं अच्छी लगी।

dr.surangma yadav ने कहा…

भावपूर्ण सरस अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई और नमन।

rameshwar kamboj ने कहा…

कृष्णा जी,ज्योत्स्ना प्रदीप, भावना सक्सैना, पूर्वा शर्मा, अनिता मण्डा , सुरंगमा यादव आप सभी का आभार । रामेश्वर काम्बोज

Dr. Surendra Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर।सुरेन्द्र वर्मा।

सहज साहित्य ने कहा…

आभार आदरणीय वर्मा जी

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सभी ताँका बेहद सारगर्भित, शब्द एवं भाव का जादू है जो सीधे मन में उतर गया.

आहत मन
अगरू गन्ध रोई
मन्त्र सुबके
उदासी -भरा पर्व
अश्रु का आचमन।

हार्दिक बधाई भैया.

rameshwar kamboj ने कहा…

आपके आत्मीय शब्दों के बहुत-बहुत आभार बहन जेन्नी शबनम जी ।

Unknown ने कहा…

बढिया

कमला निखुर्पा ने कहा…

हमेशा की तरह सराहनीय .... भावपूर्ण सरस

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत सुन्दर , सरस सृजन , हार्दिक बधाई !

Kamlanikhurpa@gmail.com ने कहा…

अत्यंत सरस, मनोरम, भावपूर्ण
जितनी बार पढो मन ही नहीं भरता |
बस एक ही शब्द बार-बार कहने को जी चाहता है 'वाह'

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी तांका है सभी...पर ये वाला जाने कैसी हूक उठा गया दिल में...
आँख लगी थी
सुनी हूक प्रिया की
सपना टूटा,
निंदिया ऐसी उड़ी
उम्र भर न आई।
इतने सुन्दर सृजन के लिए बहुत सारी बधाई...|