रश्मि विभा त्रिपाठी
'रिशू'
आज अवकाश का दिन था तो हफ्ते भर की थकन मिटाने और धूप के गुनगुने अहसास में नहाने मैं छत पर चल पड़ा अपने राजदुलारे को गोद में लेकर।
दरअसल
वही तो है, जिसके अधरों की निर्मल निश्चल मुस्कान मेरे श्रांत मन को विश्राम देती
है।
धूप
तो एक बहाना है मुझे तो एकान्त में उसके साथ वक़्त बिताना है। रोज अवसर कहाँ मिलता
है भागम-भाग के बीच। मेरा जी तो उसे एक पल को भी छोड़कर कहीं जाने का नहीं होता मगर
अन्य दायित्वों का भार भी तो मुझे ही वहन करना है इसीलिये कर्तव्य मार्ग पर चल
देता हूँ हर सुबह और शाम आकर उसकी प्रेम पगी मीठी -तोतली वाणी सुन
तृप्त हो सो जाता हूँ।
मैं
कुछ देर उसके साथ खेलता रहा फिर बीच छत में पलंग बिछा उसे अपने साथ लिटा लिया।
ज्यूँ ही वह आँखें मूँदने लगा कब उसके साथ मैं भी नींद के आगोश में समा गया पता ही
न चला।
अचानक
मेरे अंतस ने मुझे आवाज देकर जगाया। मैं सहसा उठा देखा तो टप्पू वहाँ नहीं था
"अरे कहाँ गया मेरा लाल? अभी तो यहीं सोया था"
मैं
हड़बड़ा गया मगर जैसे ही पलट कर देखा तो मैं बिल्कुल अवाक रह गया। मेरा रोम-रोम
काँपने लगा,
भय से मेरी आवाज मेरे कंठ में ही जम गयी।
"यह क्या?" वह घुटनों के बल सरकते-सरकते उस छोर
पर जा पहुँचा जहाँ ग्रिल नहीं थी!
नवनिर्मित भवन की चौथी मंजिल की
छत पर एक ईंट की भी दीवार नहीं किसी कारणवश निर्माण कार्य कुछ दिनों के लिये बन्द
करा दिया था ।
मेरा
दिल जोरों से धड़क रहा था। उसे पुकारूँ तो वह नादान खेल समझ कर आगे की ओर ही
भागेगा। वह मुझसे 7-8
मीटर की दूरी पर था। उसका हाथ पकड़ मैं उसे अपनी ओर खींचने में विवश
था।
और
फिर किसी अनिष्ट की आशंका से घबराया हुआ मैं बिना कुछ सोचे उसी क्षण अचानक कूद
पड़ा। 8
मीटर की उस छलाँग ने मेरे हाथ मेरे बच्चे के नन्हे पैरों तक पहुँचा
दिये। वह मेरी गिरफ्त में था।
"आह मेरा बच्चा"
मैंने
धीरे से उठा कर उसे अपने सीने से लगा लिया।
जब
भी कभी वह दृश्य मेरी आँखों में घूमता है तो सोचता हूँ कि कैसे पुत्र के मोह ने
मुझे चैंपियन बना दिया और मैं विजयी हुआ।
नीचे
आकर उसकी माँ को एवं अपने पिताजी को सारा वृत्तांत बताया।
"तेरा लाख लाख शुक्रिया प्रभु"- हाथ जोड़ते हुए
उन्होंने ईश-कृपा का बारम्बार आभार व्यक्त किया कि हमारे घर का चिराग महफूज है।
मैंने आराम की परवाह न करते हुए उसी दिन तुरंत मजदूरों को बुलाया और अपनी देख रेख
में अधूरा काम पूरा कराया ऊँची ग्रिल को लगवाया ताकि कभी वह उस छोर तक जाये भी तो
ओट में ही रहे।
1
शिशु -मुस्कान
हर
लेती थकान
बाँटे
आह्लाद।
2
बाल-सुरक्षा
बाधाओं
के विरुद्ध
मैं
जीता युद्ध।
-0-
12 टिप्पणियां:
ओह! मेरी तो साँस रुक गई थी पढ़ते पढ़ते। कमाल का हूबहू चित्रण किया है। ऐसी छोटी छोटी लापरवाहीयों से हर साल कितने ही मासूम काल के गाल में समा जाते हैं। बहुत उम्दा लिखा।
सजीव चित्रण।
बहुत ही अच्छा लिखा, हार्दिक बधाई।
जीवंत चित्रण -बधाई।
बहुत ही अच्छा लिखा आपने , कुछ क्षण तो साँसे जैसे रुक गयी ।
हार्दिक बधाई आपको।
बहुत सुंदर,सजीव चित्रण। बधाई
सचमुच! पल भर को जैसे साँसें थम गईं! अत्यंत सजीव चित्रण! बहुत बधाई रश्मि जी!
~सादर
अनिता ललित
आप सभी आत्मीयजन की टिप्पणी का हार्दिक आभार आदरणीय।
सादर-
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
बहुत उम्दा लिखा...बहुत-बहुत बधाई।
सुंदर-सजीव चित्रण। हार्दिक बधाई।
बहुत सुन्दर लिखा...सजीव चित्रण,दृश्य आँखों के सामने तैरने लगे...हार्दिक बधाई रिशु जी ।
एक मीठी शुरुआत के बाद अचानक जी धक् से रह गया पढ़ते पढ़ते...| जाने कितनी ऐसी घटनाएँ याद आ गई, पर फिर एक सुखद अंत से मन शांत हुआ |
बहुत प्यारा हाइबन, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें |
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