भीकम सिंह
सुदूर गाँव 
तेज योजनाओं से
पास में आए ,
खेतन में दूर की
दृष्टि जमाए ,
शस्यों से लबालब 
बाँह फैलाए ,
समाप्त हो जाएँगे  ?
खलिहान में 
पुआल का छप्पर
यूँ लगाए - लगाए  ।
गाँव- 87
खेतों से करें
प्रातः की शुरुआत 
गाँव के गाँव 
सावन की हवा में 
डरके करें 
सारे धान आदाब ,
बन्द खिड़की 
खलिहान भी खोले
फटे-लटों में 
दौड़ी आए बड़की
खाती हुई झिड़की  ।
गाँव  - 88
दौड़ती हवा 
खेतों के चारों ओर 
बदल रही
फसलों का जीवन ,
लम्बी साँसें ले
थक रही जमीन 
पीठ पे ढोते 
उर्वरकों के बोरे ,
खलिहान से
लौट आए हैं
गाँव 
लेकर वादे कोरे  ।
गाँव  -89
गहरे धँसे 
गाँव तो जोतते हैं
दिन में खेत 
मगर उग आती 
धूल -औ- रेत 
भटके अंधड़
का
एक टुकड़ा 
खलिहानी आँखों में 
भर देता है 
तेज हवा के साथ 
पसरती- सी रात ।
गाँव  - 90
उर्वरता भी
खेतों में नहीं बची 
कोशिश बची 
कुछ बात करती 
ओस कणों से, 
कुछ अघाते हुए 
खलिहानों से, 
एक घनेरी रात
जो बना रही 
फसलों के अन्दर 
डर का समन्दर  
-0-

 
 
8 टिप्पणियां:
सुंदर सीरीज
बधाई
बहुत ही सुन्दर सभी चोका, हार्दिक बधाई आपको।
बहुत सुन्दर चोका भीष्म सिंह जी हार्दिक बधाई ।
विभा रश्मि
भीकम सिंह जी बहुत सुन्दर चोका । हार्दिक बधाई आपको ।
विभा रश्मि
बहुत सुंदर चित्रण। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी। सुदर्शन रत्नाकर
ग्राम्य जीवन के प्रतिनधि हाइकुकार/चोका/ताँका/सेदोका ...के प्रतिनिधि रचनाकार के रूप में डॉ. भीकम सिंह जी अपनी अलग पहचान बना चुके हैं,सम्भवतः इस क्षेत्र में इतना सक्रिय रचनाकार दूसरा नहीं है।सभी चोका बहुत सुंदर हैं।बधाई भीकम सिंह जी को।
मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और खूबसूरत टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।
गाँव पर बहुत गहन रचनाएँ। अद्भुत चित्रण। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।
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