रश्मि विभा त्रिपाठी
1
सुनो! वाकई
तुम्हारी बातों में है
एक अजब शफा ,
दो बोल बोले
और कर दिया है
हर दर्द को दफा।
2
सुनो! वाकई
एक जादू की छड़ी
तुम्हारी चाहत है,
ओ मेरे मीत
दर्द औ गम में भी
मुझको राहत है।
3
सुनो! वाकई
तुम्हारी ही तुम्हारी
धुन मेरे मन में,
तुमसे ही हैं
ओ मेरे मीत सारी
खुशियाँ जीवन में।
4
सुनो! वाकई
तुम्हारी याद मीत
सुख की प्रदाता है,
तुम्हें मैं सोचूँ
मुस्करा उठती हूँ
दर्द मिट जाता है।
5
सुनो! वाकई
तुम्हारे ध्यान में मैं
जब- जब जाती हूँ,
सारे दुखों से
ओ मेरे मनमीत!
निर्वाण मैं पाती हूँ!!
6
सुनो! वाकई
हरेक पल
तुम्हें
मैं याद करती हूँ,
जो तुम ना हो
मेरे मनमीत तो
मैं आहें भरती हूँ।
7
सुनो! मुझको
तुम्हारी ही तुम्हारी
कबसे चाहत है,
गले लगके
जकड़ लो बाहों में
तुम्हें इजाजत है।
-0-
11 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर सेदोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
त्रिवेणी में मेरे सेदोका प्रकाशित करने हेतु आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।
आदरणीय भीकम सिंह जी का हार्दिक आभार।
आपकी टिप्पणी हमेशा बल देती है।
सादर
रश्मि विभा त्रिपाठी
कितना सुंदर लिखा है।❤️
बहुत सुंदर सेदोका रश्मि जी, हार्दिक बधाई!
बहुत ही सुन्दर, हार्दिक बधाई आपको।
सादर
सुरभि डागर
बहुत सुन्दर सेदोका । हार्दिक बधाई मीता ।
विभा रश्मि
अच्छे सेदोका-बधाई।
आप सब आत्मीय जन की टिप्पणी का हार्दिक आभार।
सादर
रश्मि विभा त्रिपाठी
बहुत सुंदर सृजन। बहुत-बहुत बधाई रश्मि जी।
बहुत सुंदर मनमोहक सेदोका। हार्दिक बधाई रश्मि जी। सुदर्शन रत्नाकर
रश्मि जी । सुंदर सेदोका लिखे हैं। मीत की प्रीत में मन भाव उमड़ ही आते हैं। बधाई। सविता अग्रवाल”सवि”
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