डॉ. जेन्नी शबनम
खेत बेचारे
एक दूजे को देखें
दुख सुनाएँ
भाई-भाई से वे थे
सटे-सटे-से
मेड़ से जुड़े हुए,
बिछड़े खेत
बिक गए जो खेत
वे रोते रहे
मेड़ बना बाउंड्री
कंक्रीट बिछे
खेत से उपजेंगे
बहुमंज़िला
पत्थर-से मकान,
खेत के अन्न
शहर ने निगले
बदले दिए
कंक्रीट के जंगल,
खेत का दर्द
कोई न समझता
धन की माया
समझे सरमाया,
खेत-किसान
बेबस व लाचार
हो रहे खत्म
अन्न, खेत, किसान
खेत न बचा
अन्न कहाँ उपजे?
कौन क्या खाए?
ओ सरमायादार
अब तू पत्थर खा।
7 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
सुंदर चोका।बधाई।
ओ सरमायादार
अब तू पत्थर खा। बहुत खूब। यथार्थ का चित्रण करता सुंदर चोका। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
Best
बहुत सुंदर, सार्थक चोका। बधाई जेन्नी जी
मेरी लेखनी को आप सभी का स्नेह मिला, हृदय से आभारी हूँ।
बहुत बढ़िया चोका
हार्दिक बधाई जेन्नी जी
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