भीकम सिंह
1
ऑंखों में चले
मेघ के सिलसिले
सच्चे -औ-सही
मैं तो देखता रहा
बहार आई कहीं ।
2
मेरी जमीन
और घर ऑंगन
गली भी मेरी
फिर भी सुनें लोग
क्यों अनकही मेरी ।
3
प्रेम में कभी
टूट जाते हैं सभी
ख़्वाब -औ-ख़्याल
बन जाते हैं रास्ते
एक नया बवाल ।
4
उसकी जुल्फ़ें
बसन्त -सा ओढ़े हैं
लोग क्या जाने
पतझड़ से पूछो
मस्त झोंकों के माने ।
5
झूठ है नही
प्रेम हो जाने को है
आज भी वही
उड़ रहे हैं मेघ
वहीं पर वैसे ही ।
6
वो भी दिन थे
प्यार वाले दिनों में,
शाम के होते
आ जाती थी चाँदनी
कुछ कुहासे होते।
-0-
8 टिप्पणियां:
बहुत ही शानदार लिखा है आपने।
हार्दिक बधाई आपको।
रससिक्त मर्मस्पर्शी ताँका, भीकम सिंह जी सदैव प्रभावित करते हैं, बहुत बहुत बधाई 💐
बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण ताँका।
हार्दिक बधाई आदरणीय भीकम सिंह जी को। 💐
सादर
बहुत सुंदर। भावपूर्ण। हार्दिक बधाई सर।
प्रेम रस की भावपूर्ण अभिव्यक्ति।सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।सुदर्शन रत्नाकर
सुंदर भाव लिए सभी ताँका!
~सादर
अनिता ललित
हमेशा की तरह 'मैजिकल', हार्दिक बधाई आदरणीय।
बहुत सुंदर ताँका...हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।
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