बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

899-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ के दस सेदोका


मेरी पसन्दः रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ के दस सेदोका
डॉसुधा गुप्ता
इक्कीसवीं सदी का दूसरा दशक जापानी काव्य-विधाओं के हिन्दी में अवतरण एवं विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। पिछले पचास वर्षों में हाइकु ने पगडण्डी छोड़, राजमार्ग पकड़ लिया थाइस सदी के प्रथम दशक में जापानी कविता को दूसरी विधा ताँका पर्याप्त चर्चित एवं लोकप्रिय होने की राह पर थी, ‘हिन्दी हाइकु’ (सम्पादक डॉ-हरदीप कौर सन्धु, सह-सम्पादक श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, प्रारम्भ(4 जुलाई, 2010) बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा था। ऐसे में इन्हीं दोनों ने एक नवीन ब्लॉग ‘त्रिवेणी’ आरम्भ किया, जिसमें ताँका, चोका, हाइगा प्रकाशित होते थे (प्रारम्भ 23 सितम्बर 2011)। उपर्युक्त सम्पादक द्वय नवीनता का प्रेमी है, अतः जापानी विधा ‘सेदोका’ से पाठकों का परिचय कराया और रचनाकारों को प्रेरित किया कि सेदोका लिखें और त्रिवेणी के लिए भेजें। परिणाम आशातीत रहा, देखते ही देखते इतने सेदोका (अच्छे, सार्थक, शास्त्रीय परिभाषा के अनुकूल) एकत्र हो गए कि एक संग्रह बन सके। अतः 21 रचनाकारों के 326 सेदोका का संग्रह ‘अलसाई चाँदनी’ जो कि भारत में हिन्दी सेदोका का प्रथम संकलन है, 2012 में प्रकाशित हो गया। (यह सम्पूर्ण सूचना संकलन की भूमिका ‘अपनी बात’ के आधार पर दी गई है। सम्पादन किया है श्री ‘हिमांशु’, डॉ .भावना कुँर एवं डॉ.हरदीप कौर सन्धु ने) ‘अलसाई चाँदनी’ का गर्मजोशी से स्वागत हुआ और नए-नए रचनाकार सेदोका से जुड़ते गए-त्रिवेणी में छपते रहे।
हिमांशु जी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि आप ‘टीम-वर्क’ में विश्वास रखते हैं और जिस लक्ष्य को चुन लेते हैं ,उसे पूरा करने में जुट जाते हैं। परिणाम सदैव फलप्रद होता है। उनके सेदोका प्रेम ने बड़ी जल्दी इस विधा को लोकप्रिय बना दिया-इसके बाद अनेक एकल सेदोका-संग्रह प्रकाशित हुए---
अब मैं हिमांशु जी के उन दस सेदोका का ज़िक्र करना चाहूँगी, जो मुझे बेहद अच्छे लगे ।
हिमांशु जी प्रकृति से अपने लगाव के लिए ख्यात हैं ,तो दो सेदोका देखेंः प्रकृति का मोहक रूप-
1- झील का तट / बिखरी हो ज्यों लट / मचलतीं उर्मियाँ
पुरवा बही / बेसुध हो सो गई / अलसाई चाँदनी (13)
दूसरी ओर अभाव का अंकन, पर्यावरण के प्रति सचेत होने का सुंदर प्रमाण हैः
2- तपती शिला / निर्वसन पहाड़ / कट गए जंगल
न जाने कहाँ / दुबकी जल-धारा / खग-मृग भटके (27)
स्वार्थी इस संसार में आज स्थिति यह है कि दूसरे को सुखी देखकर मनुष्य दुःखी हो जाता है और दूसरे पर विपदा पड़े तो तृप्ति का अनुभव करता है-
3- शीतल जल / दो बूँद पिया जब / उनको नहीं भाया
ज़हर पिया / जब भर के प्याला / वे बहुत मुस्काए (12)
प्रेम’ मानव जीवन की वह शाश्वत भावना है जिस पर संसार टिका है, यदि जीवन में सच्चा मन-मीत मिल जाए तो मानव धन्य हो उठता है, उदात्त धरातल पर अवस्थित रचनाकार अभिव्यक्ति के लिए तदनुरूप शब्द-सम्पदा में उस भावना को यूँ प्रकट करता हैः
4- पुण्यों की कोई / तो बात रही होगी / कि राहें मिल गईं
जागे वसन्त / पाटल अधर पे / ऋचाएँ खिल गईं
जीवन तो सुख-दुःख का ऐसा संगम है जहाँ हर मानव को क्रमशः इन स्थितियों से गुज़रना अनिवार्य है। मन की वेदना को साझी करने वाला कोई मिल जाए तो सेदोकाकार कह उठता हैः
5- खाए हैं घाव / चलो, उनको धो लें / दुःख के पन्ने खोलें
करता है जी / गले से लगकर / जी भर हम रो लें
सेदोकाकार का जीवन-दर्शन अनूठा है, वह प्रेम बाँटने और धरा को सिंचित करने में विश्वास रखता हैः
6- आएँगे लोग / उठे हुए महल / गिरा जाएँगे लोग
शब्दों का रस / हार नहीं पाएगा / प्रेम-गीत गाएगा
कवि मन, भौतिक समृद्धि एवं विलासिता से कोसों दूर, जैसी परिस्थिति मिल जाए, उसी में सन्तुष्ट है। एक खूबसूरत सेदोका देखिए:
7- बीता जीवन / कभी घने बीहड़ / कभी किसी बस्ती में
काँटे भी सहे / कभी फ़ाके भी किए / पर रहे मस्ती में
अनन्य प्रेम की एकाग्रता में रचनाकार का मन किसी एक बिन्दु पर ऐसा स्थायी भाव से समर्पित हो चुका है कि अब ईश्वर (मंदिर) के प्रति कुछ भी देने को शेष नहीं बचा --- फिर?
8- मैं मजबूर / कि सिर झुकता है / तेरे दर पे आके
तू ही बता दे / किस मुँह से भला / मन्दिर अब जाऊँ
यह स्वार्थी संसार केवल लेना जानता है, सब कुछ हथियाकर, वक्त पड़ने पर मुँह मोड़कर, खिसक जाता है, कवि ने अपनी वेदना (जो प्रायः हर व्यक्ति के मन की वेदना है) इस सेदोका में रख दी हैः
9- नेह था बाँटा / अँजुरी भर-भर / जीवन-घट रीता
प्यास लगी थी / दो घूँट जल माँगा / कुछ भी नहीं पाया
हिमांशु जी के सेदोका पढ़ने का आनन्द अपूर्व है। चंदन की शीतलता, भोर की ताज़गी, तुषार-बिन्दु की पावनता का संगम अनूठा है। वस्तु और शिल्प का उत्कृष्ट संतुलन सेदोका विधा की परिपक्व, प्रांजल, समुन्नत स्थिति का उद्घोष करते हैं। रस में पगा मन, भीगी पाँखुरी-सा (उड़ने-हिलने-डुलने में असमर्थ) कह उठता हैः
           10-मूक है वाणी / कि न पार पाते हैं / शब्द हार जाते हैं
जब तुम्हारा / नभ जैसा निर्मल / हम प्यार पाते हैं
श्री ‘हिमांशु’ जी ने हिन्दी के रचनाकारों को इस नवीन जापानी काव्य-विधा से परिचित कराया, स्वयं सेदोका लिखे और अन्य कवियों से लिखवाने हेतु प्रेरित किया, वह बधाई के पात्र हैं।
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14 टिप्‍पणियां:

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

बधाई , सुंदर सेदोका के दर्शन हुए ।
रमेश कुमार सोनी , बसना

Satya sharma ने कहा…

बहुत ही अच्छी एवं सारगर्भित समीक्षा।
हार्दिक बधाई आदरणीया सुधा दी एवं काम्बोज भैया 🙏🙏

Sudershan Ratnakar ने कहा…

बहुत सुंदर सेदोका। बधाई

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

रचनाकार जब आदरणीय हिमांशु भैया जी हों और प्रशंसक तथा समीक्षक आदरणीया सुधा दीदी जी ... तो फिर हम सबके रसास्वादन हेतु जो सामने आएगा, वह नैसर्गिक से कम नहीं कहा जा सकता! आदरणीया दीदी जी ने बहुत ही ख़ूबसूरत सेदोका चुने हैं एवं उनका वर्णन भी उतना ही प्रशंसनीय है! आप दोनों के लेखन के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाने जैसा होगा! हमें गर्व है कि आप दोनों की प्रेरणा एवं छत्रछाया में हमारा लेखन पला! अभिभूत हैं हम!
आप दोनों को एवं आपकी लेखनी को नमन!

~सादर शुभकामनाओं सहित
अनिता ललित

Krishna ने कहा…

बेहद ख़ूबसूरत सेदोका। सारगर्भित समीक्षा।
भाई काम्बोज जी तथा आ. सुधा दीदी को हार्दिक बधाई।

Vibha Rashmi ने कहा…

आ.सुधा दीदी की पसंद के हिमांशु भाई के , प्रकृति के खूबसूरत सेदोका , साथ ही सुन्दर - सटीक समीक्षा पढ़कर आनंद आ गया । आ.सुधा दी और हिमांशु भाई को हार्दिक बधाई ।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

खूबसूरत सेदोका, बेहतरीन समीक्षा। बहुत आनंद आया। बधाई स्वीकारें आदरणीय भाई साहब एवम सुधा दीदी!

Jyotsana pradeep ने कहा…

भैया जी की हर रचना लाजवाब होती है उस पर सोने पर सुहागा आद.सुधा जी की ख़ुबसूरत समीक्षा...
हम हृदय से नमन करते हैं आप दोनों रचनाकारों की लेखनी को !आप स्वस्थ रहें और हम पर अपना आशीष झरते रहें lहार्दिक बधाई आद.सुधा जी और भैया जी को !

सदा ने कहा…

जितनी सुन्दर लेखन शैली ... उतनी ही शानदार समीक्षा भी ... वंदन अभिनन्दन इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए...

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

बहुत सुन्दर सेदोका और आ. सुधा जी द्वारा समीक्षा |ऐसी समीक्षा पढ़कर बहुत सीखने को मिलता है |सभी सेदोका एक से एक बढ़कर हैं |भाई काम्बोज जी और सुधा जी को हार्दिक बधाई |

rameshwar kamboj ने कहा…

मैं आप सबके प्रोत्साहन -भरे शब्दों का बहुत ही आभारी हूँ। रामेश्वर काम्बोज

Dr.Purnima Rai ने कहा…

वाह अत्युत्तम सृजन आदरणीय सर एवं बेहतरीन ढंग से अभिव्यक्त करने तथा संयोजन हेतु आदरणीया आपको नमन

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बेहद उम्दा भाव. सभी सेदोका बहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण. काम्बोज भाई की लेखनी जितनी कमाल की है सुधा जी की समीक्षा भी उतनी ही सुन्दर. आप दोनों को हार्दिक बधाई.

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

आदरणीय काम्बोज जी की कलम जितनी खूबसूरत रचनाएँ रचती हैं, उतनी ही अच्छी परम आदरणीय सुधा जी की समीक्षा भी है | आप दोनों को हार्दिक बधाई |