शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

903-नेह के नाते


रामेश्वर काम्बोजहिमांशु
1
सिरा आए हैं
सब नेह के नाते,
मीठी वे बातें,
जो दिल में बसी थीं
निकलीं सिर्फ़ धोखा।
2
बरस बीते
पथ में मिल गए
अपने लगे,
कल जब वे छूटे
टूटे सपने लगे ।
3
पीर-सी जगी
सुधियाँ वे पुरानी
याद आ गईं,
साँझ रूठी आज की
झाँझ-सी बजा गई।
4
मिलना नहीं
अब किसी मोड़ पे
डर है हमें
तुम्हें पाने को बढ़ें
फिर हम सूली चढ़ें।
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11 टिप्‍पणियां:

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

विरही मन की व्यथा को अभिव्यक्त करतेसुंदर ताँका,बधाई भाई साहब।

Dr. Purva Sharma ने कहा…

दगाबाज़ साथियों के दास्ताँ कहते बहुत भावपूर्ण ताँका
सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक बधाइयाँ सर

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

दिल के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति है भाई काम्बोज जी | बधाई ही |

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

हृदय के भावों की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकारें भाई साहब।

Krishna ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी तांका... बहुत बधाई भाईसाहब।

Jyotsana pradeep ने कहा…

मन की पीड़ा की सुंदर अभिव्यक्ति,बहुत-बहुत बधाई भैयाजी !

Sudershan Ratnakar ने कहा…

मन की गहराई से निकले भावों की सुंदर अभिव्यक्ति ।मर्मस्पर्शी ताँका

मेरा साहित्य ने कहा…

मिलना नहीं
अब किसी मोड़ पे
डर है हमें
तुम्हें पाने को बढ़ें
फिर हम सूली चढ़ें।
bahut hi sunder
badhayi aapko
rachana

मंजूषा मन ने कहा…

बहुत सुंदर और भावपूर्ण ताँका आदरणीय रामेश्वर जी

Satya sharma ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण , मन को छूते सृजन
भैया जी

Vibha Rashmi ने कहा…

वियोग के , भूली सुधियों की पीड़ा पिरोये सुन्दर ताँका । बधाई हिमांशु भाई , उम्दा अभिव्यक्ति ।