रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
सिरा आए हैं
सब नेह के नाते,
मीठी वे बातें,
जो दिल में बसी थीं
निकलीं सिर्फ़ धोखा।
2
बरस बीते
पथ में मिल गए
अपने लगे,
कल जब वे छूटे
टूटे सपने लगे ।
3
पीर-सी जगी
सुधियाँ वे पुरानी
याद आ गईं,
साँझ रूठी आज की
झाँझ-सी बजा गई।
4
मिलना नहीं
अब किसी मोड़ पे
डर है हमें
तुम्हें पाने को बढ़ें
फिर हम सूली चढ़ें।
-0-
सिरा आए हैं
सब नेह के नाते,
मीठी वे बातें,
जो दिल में बसी थीं
निकलीं सिर्फ़ धोखा।
2
बरस बीते
पथ में मिल गए
अपने लगे,
कल जब वे छूटे
टूटे सपने लगे ।
3
पीर-सी जगी
सुधियाँ वे पुरानी
याद आ गईं,
साँझ रूठी आज की
झाँझ-सी बजा गई।
4
मिलना नहीं
अब किसी मोड़ पे
डर है हमें
तुम्हें पाने को बढ़ें
फिर हम सूली चढ़ें।
-0-
11 टिप्पणियां:
विरही मन की व्यथा को अभिव्यक्त करतेसुंदर ताँका,बधाई भाई साहब।
दगाबाज़ साथियों के दास्ताँ कहते बहुत भावपूर्ण ताँका
सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक बधाइयाँ सर
दिल के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति है भाई काम्बोज जी | बधाई ही |
हृदय के भावों की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकारें भाई साहब।
बहुत मर्मस्पर्शी तांका... बहुत बधाई भाईसाहब।
मन की पीड़ा की सुंदर अभिव्यक्ति,बहुत-बहुत बधाई भैयाजी !
मन की गहराई से निकले भावों की सुंदर अभिव्यक्ति ।मर्मस्पर्शी ताँका
मिलना नहीं
अब किसी मोड़ पे
डर है हमें
तुम्हें पाने को बढ़ें
फिर हम सूली चढ़ें।
bahut hi sunder
badhayi aapko
rachana
बहुत सुंदर और भावपूर्ण ताँका आदरणीय रामेश्वर जी
बहुत ही भावपूर्ण , मन को छूते सृजन
भैया जी
वियोग के , भूली सुधियों की पीड़ा पिरोये सुन्दर ताँका । बधाई हिमांशु भाई , उम्दा अभिव्यक्ति ।
एक टिप्पणी भेजें