सृजनात्मकता
एवं गहन अनुभूति का गुणवत्तापूर्ण संग्रह
रमेश
कुमार सोनी
गीले आखर - चोका
संग्रह ,संपादक द्वय - रामेश्वर काम्बोज हिमांशु एवं डॉ भावना कुँअर ;प्रकाशक – अयन प्रकाशन,1/20, महरौली नई दिल्ली-110030; संस्करण: 2019 , मूल्य - ₹260
, पृष्ठ - 132
चोका ,जापानी विधा की लंबी कविता है, जो 5, 7........के वर्णानुशासन में उच्च स्वर में
गाई जाती है। इसकी कुल पंक्तियों का समापन विषम संख्या में होता है , इसकी लंबाई रचनाकार पर निर्भर करती है। चोका
हिंदी साहित्य में एक नया नाम तो है लेकिन अनजाना भी नहीं ;
वर्तमान में इसके कई संग्रह बाजार में उपलब्ध है तथा इंटरनेट पर
प्रचुर सामग्री भी उपलब्ध है। गीले आखर में कुल 21 में 20 महिला
साहित्यकार हैं, जो इनके साहित्य अनुराग को इंगित करता है।
नए - पुराने रचनाकारों के इस साझा संग्रह में कुल 190
चोका संग्रहित हैं ।
विशुद्ध प्रकृति वर्णन की कुशल
रचयिता डॉ.सुधा गुप्ता
के चोका में सावन झूले की सुंदर मोहक प्रस्तुति शीत में सूर्य को भ्रष्ट
अधिकारी बताना और धूप के राशनिंग का वर्णन सुंदर बन पड़ा है,
बसंत, फूलों , भौरों और
शीत के इर्द-गिर्द आँसुओं के डेरे पर समाप्त होती है तथा ग्रीन हाउस से
पीड़ित धरा का प्राकृतिक उपचार पीले
गुलाब का कोमल एहसास दे जाता है। आपके चोका में सृजनात्मकता एवं गहन अनुभूति का
सुखद चर्मोत्कर्ष है जो आपके कठिन तपश्चर्या का परिणाम है-
सिंधारा-इंतज़ार
शाखों के झूले
चिड़ियाँ गातीं गीत
पिया रंगीले ...... ।
...... हुई घोषणा
राशनिंग धूप की
बन आयी है
अफसरशाही की !
देर से खुले
सूरज का दफ्तर
बन्द हो जल्दी
निष्ठुर अधिकारी
एक ना सुने ....... ।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जो कोमल एवं मृदु शब्दों के जादूगर हैं इनके
चोका शृंगार की रचनाओं से शुरू होकर
कँटीली डगर के नगर तक जाती है जहाँ ख्वाबों
के खुशबू की दुआओं से स्वप्न हरे हो जाते हैं , शाम को
तरसती प्यासी पाखी की व्यथा पानी बचाओ का संदेश देती है ; शब्द बाण से बिंधे रिश्तो का दरकना एवं
हँसी के पीछे का छिपा दर्द कालकूट विष
के स्वाद को श्मशान तक ले जाता है । यहाँ चन्दन मन का शिलालेख विराट प्रेम को
अंकित कर सुनहले चाँदनी में गमक उठता है । समग्र जीवन के अंतर्द्वंद्वों को आपने
अपने शिल्प सौदर्य से उकेरा है-
तुम जो मिले
ताप भरे दिन में
धरा से नभ
खिले सौ सौ बसंत
कामना यही
हो पूर्ण ये मिलन
पलकें तन मन। (15)
- धीरज नहीं खोना
मन शांत हो
सिर्फ फूल खिलाना
दुआएँ करें
सुख की झोली भरे
सब स्वप्न हों हरे । (16)
....... मिटेगा नहीं
लिखा जो शिलालेख
सामान्य जैसे
अधरों ने , करों ने । (31)
डॉ. भावना कुँअर
की बचपन-सी सुकोमल
अल्हड़ता लिए चोका कागज
वाली नाव चलाते हुए, पुराना अल्बम ,
सूना घर और परिंदों की मानिंद यादों को सहेजे सहमी हिरनी -सी फुदक रही
है । ये पंक्तियाँ सुख-दुख
और सुहाने दिनों को लिए हुए बेधड़क चोका लिखने दौड़ पड़ती है । आपकी रचनाओं में बचपन की यादें , दर्द
,रिश्ते और मन के राज लिए प्रकट हुए हैं ।
पकड़ो हाथ
चलो तो मेरे साथ
तुम्हें ले चलूँ
बचपन के पास ......।
न मैं मजबूर हूँ
न ही कलम
अब न बिखरेगी
न ही टूटेगी
बेधड़क होकर
दौड़ेगी यह कलम ।
कमला
निखुर्पा के चोका पहाड़ी नार जैसी प्रेम की निशानी लिये माया की बोली बोलते हुए प्रकट हुई है। वहीं
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा के
चोका में दर्द , दुख की आँधी एवं
प्रेम से चंदा की बिंदी लगाए , हाथ
पकड़े निकल चली है।
डॉ. कविता भट्ट
के चोका में प्रेमघन को मन का आमंत्रण भेजती है, जिसे वे प्रेमग्रंथ के पन्नों पर उकेरती
हैं जिसके शाश्वत
प्रेम के मुस्काते शब्द द्रष्टब्य है -
अब गठरी लिये
स्वयं ही खोजें
पेड़ की छाँव घनी
और पीने को पानी ।
इस चोका संग्रह में शशि पाधा जी का बचपन वर्णन , पूरे
विश्वास के साथ प्रीत की परंपराओं की यादों को सहेजे
हुए हैं , वहीं प्रियंका गुप्ता जी ने मन का दर्द और
भुट्टा जैसे जिंदगी , कृष्णा वर्मा जी ने बावरी साँझ का
, पुष्पा मेहरा जी ने अपनी अनमोल दो भेटें ,
मंजूषा मन जी ने बेबस गौरैया चुप है तथा सत्या शर्मा कीर्ति जी ने
प्रभु संगीत के माध्यम से
अपने चोका को समर्पित किया है ।
डॉ. सुरंगमा यादव जी के सजल नैन से पिया घर में
आँसू , मोती बन पड़े हैं ; यद्यपि उपर्युक्त सभी चोका शिल्प की दृष्टि से कम पंक्ति वाला है, तथापि इनकी समझ काफी गहरी हैं तथा
गूढ़ संदेश लिये हुए हैं ।
सुदर्शन रत्नाकर
जी ने नव विहान में रंगीली वसुंधरा का सुंदर वर्णन किया है ; जिसकी यादों को उन्होंने माँ के साथ जोड़ा है
और दिलों के रावण को खत्म करने का संदेश देती हैं -
रंगों के मेले
तितलियों के रेले
इंद्रधनुषी
रंगीली वसुंधरा
रूप सजा निराला । (77)
डॉ. जेन्नी शबनम जी ने अतीत के अनुभवों के पन्नों पर साँसों की लय को गूँथा है ।ज्यादातर रचनाएँ जिंदगी के इर्द - गिर्द
सिमटी हुई हैं ।
भावना सक्सेना जी के चोका जिंदगी के
वक्त के आसपास बुनी हुई रचनाएं हैं इसमें -
गीत प्यार के
संगीत जीवन का
सबको सिखा
अपने घरौंदे में
धूप की डोरियों से
बुने नेह चादरें । ( 99)
ज्योत्स्ना प्रदीप जी
के चोका में शुभ सौंदर्य दमकता है लेकिन अचानक वृक्ष के वध की चिंता करने लगती हैं
–
काटो न पेड़
पार करो न हद
जान लो तुम
पादप तो संत हैं
ये हैं , तो बसंत है ।
अनिता ललित जी के चोका
में जहाँ तमाशबीन मानव है , वहीं नवाबी बादल की बूंदें घुँघरू बन बरसती हैं । धूप की गुड़िया में प्रकृति का
मासूम चेहरा स्पष्ट परिलक्षित होता है । अनिता मंडा जी के भोर के रंगों का आकर्षण
पढ़ने को खींचता है ।
रश्मि शर्मा जी की पीली चिट्ठियों में प्रेम
आज भी जिंदा है -
रहा नहीं हमसे
कोई भी नाता
मेरे पास रखी है
मुड़ी-तुड़ी सी
बिसराई उदास
वो पीली पड़ी चिट्ठी ।
मिले किनारे ( 2011)
से चोका सृजन में सृजनरत डॉ. हरदीप कौर संधु जी के
चोका समापन पृष्ठों की शान बढ़ाते हुए प्रस्तुत हुए हैं । इस दौर में युद्ध की
विभीषिका और झंडाबरदारी की होड़ को उजागर करते चोका कह उठते हैं - .....शोर न करो
.... । आपने सबसे अलग भारत के साम्प्रदायिक सद्भाव को जिंदा रखने चिड़िया -कबूतर के
शीर्षक से उम्दा चोका लिखा है -
पंख-
पंख को कर
हरा , गुलाबी
आज़ाद छोड़ देते
खुले आकाश
लगाकर अपने
नाम की पर्ची
ये है मेरी चिड़िया
वो तेरा कबूतर ।
इस चोका संग्रह
की अपनी विशेषता यह है कि इसमें चोका की गुणवत्ता पर संपादक द्वय द्वारा विशेष
ध्यान दिया गया है, यद्यपि सभी चोका इसमें एक से बढ़कर एक
हैं : लेकिन सभी का उल्लेख कर पाना सम्भव नहीं । इस संग्रह के चोका महज प्रकृति या जीवन की सम्वेदनाओं का वर्णन नहीं है, बल्कि इसके भाव और विचार अद्भुत
हैं । जापानी विधा की रचनाओं में चोका की लंबाई के साथ
वर्णानुशासन बनाए रखना चोकाकार को अपनी कसौटी पर पूरा
कसती है । यह संग्रह उत्तम सृजन हेतु नव कलमकारों का मार्ग प्रशस्त करेगा , शोध की सामग्री बनेगा और
पाठकों को अवश्य पसंद आएगा, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है ।
-0-रमेश कुमार सोनी (राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता एवं साहित्यकार )
जे पी रोड , एच पी गैस
के सामने - बसना , जिला - महासमुंद ( छत्तीसगढ़ )- 493554
संपर्क - 7049355476
10 टिप्पणियां:
रोचक लिखा है पुस्तक पर। बधाई।
बहुत सुंदर सटीक समीक्षा ।आभार रमेश कुमार सोनी जी ।
बहुत ही सुंदर वर्णन।
पढ़ने को उत्सुक कर देने वाली व्याख्या।
आइयेगा- प्रार्थना
बहुत सुन्दर समीक्षा की है रमेश जी ,सभी रचनाकारों को बधाई और रमेश जी आपकी कुशलता पूर्ण व्याख्या के लिए बधाई |
बहुत सुंदर समीक्षा । अनेकानेक बधाई ।
रमेश सोनी जी को संग्रह की उम्दा समीक्षा हेतु हार्दिक बधाई।.
समीक्षा इतनी सरस है तो संग्रह कितना सुंदर होगा, अनुमान लगाना मुश्किल नहीं!आपको बधाई, रमेश सोनी जी और सभी रचनाकारों को भी शुभकामनाएँ।
बहुत सुंदर समीक्षा लिखी है आपने रमेश सोनी जी,
आभार के साथ-साथ बधाई आपको !
बहुत ही सारगर्भित और बेहतरीन समीक्षा।
हार्दिक बधाई
बहुत सार्थक समीक्षा है | हार्दिक बधाई |
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