शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

मिले किनारे



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                              मिले किनारे 

                                       ताँका - चोका संग्रह 

                                रामेश्वर काम्बोज' हिमांशु ' / डॉ.हरदीप कौर सन्धु 
                                              संस्करण - 2011
                                                     

काम्बोज जी से व्यक्तिगत परिचय बरेली आने पर आज से 24 वर्ष पूर्व हुआ | इनकी रचनाओं  से मैं पहले से ही परिचित था | लघुकथा , कविता ,व्यंग्य , समीक्षा , लेख आदि  सभी में इनकी पकड़ सदा समाज की नब्ज़  पर रही है | सामाजिक सरोकार कभी भी इनकी रचनाओं से ओझल नहीं हुए |

         हाइकु 1986 से लिख रहे थे , लेकिन उस समय जिस तरह की रचनाएँ आ रही थीं , ये उनसे संतुष्ट नहीं थे | ' मिले किनारे ' संग्रह के ताँका और चोका रचनाओं में भी इनके वही सामाजिक सरोकार , वही अनुभूति की ईमानदारी , वही बेबाक अभिव्यक्ति दिखाई देती है , जो इनके जीवन का भी अटूट हिस्सा रही है |मैंने इनको शिक्षक एवं प्राचार्य के रूप में भी निकटता से देखा है |ये जीवन और साहित्य में एक ही जैसी क्षमता से कार्य करते नज़र आते हैं |इनके चाहे ताँका  हों या चोका , वे व्यक्ति और समाज के दुःख -सुख के साक्षी ही नहीं , भागीदार बने दिखाई देते हैं| पर-दुखकातरता की इनकी विशेषता एक ओर इनकी भावभूमि है तो भाषा पर मज़बूत पकड़ , सार्थक शब्द -चयन  में इनकी परिपक्वता और क्षमता भाषा -संस्कार के रूप में हर पंक्ति में दृष्टिगत होती है |पाठक इनकी रचनाओं को पढ़कर इन्हें जान सकता है ,इसमें दो राय नहीं है |

                                                          ------- सुकेश साहनी


यह सुखद है कि हिन्दी जगत में ‘हाइकु’ के पूर्णत: प्रतिष्ठित एवं समादृत होने के पश्चात् अब जापान की अन्य काव्य शैलियों-ताँका ,चोका, हाइगा की ओर रुझान बढ़ रहा है ।

डॉ हरदीप कौर सन्धु एक ख्यात हाइकुकार हैं और नवीन प्रयोगों में रुचि रखती हैं।प्रस्तुत संग्रह ‘मिले किनारे’ में उनके एक सौ ताँका और ग्यारह चोका  कविताएँ संगृहीत हैं । ‘ताँका’ में उन्होंने ग्राम्य जीवन और लोक संस्कृति के ऐसे अनूठे चित्र उकेरे हैं,जिन्होंने उनकी कविता को एक नई ताज़गी प्रदान की है । आंचलिक शब्दों के प्रयोग ने कविता में अपूर्व माधुर्य एवं विश्वसनीयता भर दी है । उनकी रचनाओं में रिश्तों की पावन महक-विशेष रूप से माँ के प्रति लगाव  दर्शनीय है! डॉ सन्धु के ताँका आर्जव , माधुर्य एवं लालित्य से भरपूर हैं।

           चोका कविताओं में तारत्म्य और नैरन्तर्य  बना रहता है;जो चोका का विशेष गुण है, साथ ही आन्तरिक लय भी है । ‘गुलमोहर’ , ‘वसन्त ॠतु’, ‘तेरी ख़्वाहिश’ ,’रब की चिता’, ‘अपना घर’ और  ‘रब जैसी माँ’ शीर्षक चोका  कविताएँ विशेष मोहक बन पड़ी हैं ।

 -डॉ0 सुधा गुप्ता

पवित्रा एकादशी 9 अगस्त ,2011



10 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत सुन्दर परिचय मिला दोनों लेखकों का । हाइकु के प्रति आपकी रूचि और हाइकु ज्ञान अत्यंत सराहनीय है । शुभकामनायें हरदीप जी ।

Rachana ने कहा…

aapdono ko bahut bahut badhai
rachana

Bharat Bhushan ने कहा…

बढ़िया कार्य किया गया है. शुभकामनाएँ. ब्लॉग बहुत सुंदर बन पड़ा है.

हिन्दी हाइगा ने कहा…

आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ|
सादर
ऋता

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

आदरणीय काम्बोज जी और हरदीप जी को बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ...।

प्रियंका

Udan Tashtari ने कहा…

बधाई और शुभकामनाएँ|

amita kaundal ने कहा…

aap dono ko bahut bahut badhai.........
amita kaundal

Rama ने कहा…

डा. रमा द्विवेदी
` मिले किनारे' ताँका और चोका संग्रह प्रकाशन के लिए आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं .....

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

पुस्तक प्रकाशन पर बहुत-बहुत बधाई

प्रेम गुप्ता `मानी' ने कहा…

एक संग्रहणीय पुस्तक के प्रकाशन पर मेरी बधाई और शुभकामनाएं...|
मानी