रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तन-मन सब दे डाला
बदले में पाया
इक ज़हर-भरा प्याला ।
2
हर रोज़ दग़ा देंगे
रिश्ते आँधी हैं
बस आग लगा देंगे ।
3
इल्ज़ाम सभी पाए
अपनों के हाथों
हमने धोखे खाए ।
4
हम यूँ भी कर लेंगे
दोष तुम्हारे भी
अपने सिर धर लेंगे ।
-0-
11 टिप्पणियां:
बेहद खूबसूरत माहिया
वाह काम्बोज सर! ग़ज़ब का लिखा है!
आज के रिश्तों की सच्चाई बयाँ करते बहुत भावपूर्ण माहिया !
हम यूँ भी कर लेंगे
दोष तुम्हारे भी
अपने सिर धर लेंगे !!..बेहद ख़ूबसूरत !!!
सादर नमन के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा
मर्मस्पर्शी सुन्दर माहिया के लिए हार्दिक बधाई ।
सादर
रेखा रोहतगी
behad khubsurat mahiya sabhi :)
तन-मन सब दे डाला
बदले में पाया
इक ज़हर-भरा प्याला ।
2
हर रोज़ दग़ा देंगे
रिश्ते आँधी हैं
बस आग लगा देंगे ।
क्या कहें! भैया जी! दर्द की इतनी ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति!
बस निःशब्द हैं हम …
~जलती लकड़ी से रिश्ते
दूर हों तो धुआँ देते हैं
पास हों जला देते हैं...~
~सादर
अनिता ललित
rishton ki asaliyat batate aurunako nibhane ki kala sikhate sabhi mahiya yathart ko saheje hain.bhai ji apko badhai.
pushpa mehra.
जलती लकड़ी से रिश्ते
दूर हों तो धुआँ देते हैं
पास हों जला देते हैं...
बहुत ही भावपूर्ण माहिया !
कंबोज भाई बहुत बहुत बधाई !
Dr Saraswati Mathur
हम यूँ भी कर लेंगे
दोष तुम्हारे भी
अपने सिर धर लेंगे --- हर माहिया में शब्दों से ढका एक दर्द छिपा और मन को भिगो गया | बधाई आपको |
शशि पाधा
हर रोज़ दग़ा देंगे
रिश्ते आँधी हैं
बस आग लगा देंगे ।
कितना दर्द भरा है इस कटु सत्य में...| सारे माहिया जैसे दिल में उतर जाते हैं शब्द-ब-शब्द...| बस एक शब्द मेरा भी इनके लिए...वाह!
तन-मन सब दे डाला
बदले में पाया
इक ज़हर-भरा प्याला ।behad marmik v khoobsurat bhi..sadar naman ke saath -saath badhai .
एक टिप्पणी भेजें