डॉ•भावना कुँअर
1
काँटों पे चले
उफ़ तक भी न की
ऐसे जिए थे हम,
सैलाब आया
सब बहा ले गया
उखड़े थे कदम।
2
चुभते रिश्ते
पल-पल मुझसे
कुछ माँगते रहे,
चुकाया सब
कीमत दे साँसों की
फिर भी रहा बाकी।
3
लगी जो काई
रिश्तों पर हमारे
अब हटेगी कैसे ?
रूठ के बैठी
खुशियों की किरण
अब मनाएँ कैसे?
-0-
8 टिप्पणियां:
ज़िंदगी की सच्चाई से रूबरू करा देती हैं आपकी रचनाएँ... भावना जी ! दिल को गहरे छू गए आपके सेदोका।
सुंदर, भावपूर्ण, मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आपको!
~सादर
अनिता ललित
Bahut sunder!
चुभते रिश्ते
पल-पल मुझसे
कुछ माँगते रहे,
चुकाया सब
कीमत दे साँसों की
फिर भी रहा बाकी।
बहुत खूब सेदोका....बधाई भावना जी!
चुभते रिश्ते
पल-पल मुझसे
कुछ माँगते रहे,
चुकाया सब
कीमत दे साँसों की
फिर भी रहा बाकी।
bahan bahut khoob bahan sunder bhav
rachana
बेहद भावपूर्ण ...मर्मस्पर्शी सेदोका !
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई भावना जी !!
भावना जी यह कटु सत्य है कि सर्वस्व होम करने पर भी रिश्ते बचाए नहीं जा सकते । जितना हम रिश्तों को निभाने में समर्पित होते हैं , वे और भी अधिक की माँग करने लगते हैं। साँसों की कीमत देकर भी उनको नहीं बचा पाते। यह सेदोका तो पूरे जीवन का दर्शन है-
चुभते रिश्ते
पल-पल मुझसे
कुछ माँगते रहे,
चुकाया सब
कीमत दे साँसों की
फिर भी रहा बाकी।
sundar ,marmsparshee v bhaavpurn prastuti ke liye badhai bhwna ji .
बहिन जी, सेदोका "चुभते रिश्ते..." बहुत ही उम्दा है | बधाई स्वीकारें |
एक टिप्पणी भेजें