दोस्ती की गाँठ
कमला घटाऔर
खेल खेल में
बचपन दे गया
अमूल्य ज्ञान ।
कमला घटाऔर
हमारा आँगन काफी बड़ा था । शाम के समय मैं और मेरी सहेलियाँ इकट्ठी होकर वहाँ अपने मन पसन्द खेल खेलतीं । कभी दो लड़कियाँ रस्सी घुमाती हम बारी बारी से बीच जा कर बिना आउट हुए बाहर आ जाती । कभी सटैपू खेलती , कभी किकली । बैठ कर गीटे खेलना हमें पसंद नही था । वह छोटी लड़कियाँ खेलती ।
उस दिन हम स्टैपू खेल रही थी। मेरी सखी रमा से खेल में उसका स्टैपू लाइन से इस पार रह गया लाइन को छू रहा था । सब शोर मचाने लगीं… रमा आउट । एक लड़की बोली अब मेरी बारी । हटो । उसने रमा को बाहर निकाल दिया बनाए खानों से । वह भी गुस्से से पैर पटकती रूठकर घर चली गई । हमने खेल जारी रखा । उसने नहीं खेलना जाने दो । हमने सोच लिया ।
जाने कहाँ दे सकती थी वह ? वह तो अपनी मम्मी को ले आई हमारी शिकायत करके कि हम उसे अपने साथ खिला नहीं रही । आंटी बोली "क्या बात है वई ? रमा को क्यों नहीं साथ ले कर खेलती ?"
मैंने कहा, " आंटी हमारे साथ खेलते खेलते खुद ही खेल छोड़कर चली गई ।"
आंटी ने उस पर आँखें तिरेरी । पूछा ,"यह सच कह रही हैं ?"
उसने हाँ में सिर झुका लिया ।
आंटी बोली ,"चलो हाथ मिलाओ । करो सुलह ।"
वह अपने भाइयों की लाड़ली छोटी बहन कुछ ज्यादा ही जिद्दी थी
मैं हाथ आगे बढ़ाकर खड़ी रही । पर वह सुलह को तैयार नहीं थी ।
आंटी ने दुबारा कुछ नहीं कहा बस हम दोनों की चोटियाँ बाँध दी । मेरी मम्मी भी वहीँ हमें देख रहीं थी । आंटी ने उनसे भी कहा ,"जब तक ये हाथ मिला कर पुन: दोस्ती नहीं करती इसी तरह रहेंगी ।आप भी इन्हें अलग नहीं करना ।"
फिर आंटी हमसे बोली , "अरी बेवकूफो बचपन हँसने खेलने के लिए होता है या रूठकर अपना और दूसरों का मन दुखाने के लिए ।"
हम जैसे ही अपने को एक दूसरे से दूर करती हमारे बाल खिंचते फिर पास आ जाती । इसी चक्कर में हमारी हँसी निकल गई ।हमने दोस्ती के लिए अपना हाथ आगे कर दिया । जब तक हमारे बचपन ने साथ नहीं छोडा ।दुबारा यह नौबत नहीं आई । आंटी की दी सीख अभी भी याद है । दोस्ती तोड़ने से एक का नहीं दोनों का दिल दुखता है । जैसे बाल खिंचने से ।
बचपन दे गया
अमूल्य ज्ञान ।
16 टिप्पणियां:
sweet memories of bachpan.
Manjeet kaur Meet
भोले बचपन की मधुर स्मृतियाँ ।बहुत सुंदर ,बधाई
उम्दा भावाभिव्यक्ति...
उम्दा भावाभिव्यक्ति...
कमला जी, बचपन की यादों और उससे मिली सीख को आजीवन गाँठ में बाँध लेने को प्रणबद्ध कराता हाइबन बहुत ही प्यारा है ऐसी न जाने कितनी स्मृतियाँ अतीत की कोठरी में बिना जगाये ही जागने का इन्तजार कर रही होतीं हैं,सुंदर!बधाई |
पुष्पा मेहरा
अतीत की सुंदर स्मृति...
कमला जी बहुत सुंदर लघुककथा ..अति सुंदर हार्दिक बधाई
Bahut rochak laga, kamalaji !
खेल खेल में
बचपन दे गया
अमूल्य ज्ञान ।
बहुत बहुत सुंदर औऱ शिक्षाप्रद हाइबन कमला जी। बधाई
वाह! वाह! कितनी प्यारी घटना ! बहुत अच्छा लगा हाइबन आ. कमला जी !
हार्दिक बधाई आपको!
~सादर
अनिता ललित
कमला जी आपका बचपन की मीठी यादों से भरा हाइबन पढ़कर अपना बचपन याद आ गया । हाइबन व तदनुसार हाइकु सटीक -सुंदर । बधाई !
स्नेहाधीन विभा रश्मि
प्यारा बचपन कितनी सौग़ातें देता है, यादों के गुल्लक में कितने ऐसे सिक्के खनकते रहते हैं जो समय समय पर मन में कई रंग घोल जाते हैं, सुंदर हाइबन की बधाई कमला जी।
Bachpan ke din bhi kya din the .Sundar
कमला जी बहुत सुन्दर । क्या सुन्दर अभिव्यक्ित। बचपन की जाने कितनी बातें ऑंखोंं में आ गई। हाइबन कला मुझे इस कारण से भी बहुत पसन्द है क्योंकि इस में अटूट सत्य का पुट रहता हैै। आप को सुुन्दर हाइबन हेतु हार्दिक बधाई।
आप सब स्नेही जनों ,सहपथिकों का हृदय से आभार साथ में सम्पादक द्वय का धन्यवाद जिन्होंने इसे त्रिवेणी में स्थान दे कर मुझे प्रोत्साहित किया । कभी कभी कोई बात ऐसी सामने आ जाती है कि हम भी अपने बचपन के दिनों में पहुँच जाते हैं । उम्र की सारी सीमायें लाँघ कर हम बचपन में विचरने लगता है । और कुछ न कुछ कागज पर उतर आता है ।
बचपन की ही तरह मासूम हाइबन बहुत पसंद आया |
बधाई...|
एक टिप्पणी भेजें