गुरुवार, 18 मई 2017

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1-जुगलबन्दी माहिया
सुनीता काम्बोज
1
 लाए अंगूर पिया
मैं हूँ शहजादी
तुम हो लँगूर पिया।
 0
सहता बारहमासी
ताजी दाल मिली
रोटी मिलती बासी।
2
ये अच्छी बात गढ़ी
अपनी जोड़ी है
चावल के साथ कढ़ी।
 0
शीशा  देखा करना
तुम हो थार पिया
हम हैं मीठा झरना।
3
आ प्यार सिखाऊँगी
थानेदार बुला
फिर जेल कराऊँगी।
 0
मुझसा ना पाओगी
ऐसा करके तुम
सजनी पछताओगी।
4
चिपकी है आज गली
जानम तुम लगती
गुड़ की बस एक डली ।
 0
 मैं गुड़ तुम शक्कर हो
हारोगे हमसे
मत ऐसे  टक्कर लो ।
 5
जिसका साजन लम्बा
देखूँ तो लगता
वो बिजली का खम्बा ।
 0
जीना दुश्वार लगे
मेरी सजनी तू
बिजली के तार लगे ।
6
जिसका सजना मोटा
लुढ़का ही जाए
ज्यों बिन पेंदी लोटा
लोटे में पानी है
टेढ़े दाँत वही
इस दिल की रानी है।
6
सजना है दिलवाला
लाल पजामा है
पहना कुर्ता काला
 0
गालों पर है लाली
नखरे खूब करे
बस मेरी घरवाली ।
7
तुझ पर मैं मरता हूँ
पर तेरी माँ के
डंडे से डरता हूँ
 0
सहलो ये मार पिया
संग चली तेरे
छोड़ा घर- बार पिया
8
छोड़ो तकरार,चलो
अपनी गाड़ी में
लेकर बाजार चलो
 0
क्या आफत आई है
सेल लगी बीवी
थैले भर लाई है
9
थोड़ा तो डरते हो
बीवी के आगे
तुम पानी भरते हो
 0
हम तो बेचारे हैं
पत्नी के आगे
ईश्वर भी हारे हैं ।
10
ये जेब हुई खाली
खूब खरीदारी
करती है घरवाली
 0
 इसमे भी क्या शक है
ये संसार सकल
बीवी का सेवक है ।
 11
 यूँ बहना अच्छा है
बीवी की हाँ में
हाँ कहना अच्छा है
 0
इतनी औकात नही
उसको समझाना
अब बस की बात नहीं ।
12
 घर पर बतलाऊँगी
तेरे रोगों का
उपचार कराऊंगी।
 0
की सेवा सरकारी
बाप दरोगा है  
भाई है पटवारी।
13
मत कर जोरा-जोरी
तुम हो सूत पिया
हम  रेशम की डोरी।
 0
घर की गाड़ी चलती
करने से पहले
तू माना कर गलती 
14
तुझ पर मैं मरता हूँ
पर तेरी माँ के
डंडे से डरता हूँ
0
अब काम नहीं दूजा
मैं दिन रात करूँ
पत्नी  की ही  पूजा 
-0-

2-ताँका - सतीश राठी 

1
गहरा ताल
बचा लिया है जल
बची है नदी
सूरज के ताप से
बची रेत होने से
2
बन बैठी है
सीने पर वजन
याद- पहाड़
कैसे भुला दूँ अब
बजाया जो सितार।
3
बरसात में
भीगती रही वह
समूची रात
आँसू बन बहे थे
बवण्डर बादल।
4
हँसते लब
दिल में घाव सा
खामोश मन
गम की नदिया में
कागज की नाव सा
5
नदी ने पूछा
प्रेम करते हो क्या
दिल ने कहा
प्रेम की कलकल
सीखी है तुमसे ही
-0-
सतीश राठी,आर-451, महालक्ष्मी नगर,इंदौर 452010
9425067204
rathisatish1955@gmail.com

-0-

8 टिप्‍पणियां:

Anita Manda ने कहा…

सुनीता जी कमाल किया है जुगलबन्दी में।

सतीश जी की सुंदर ताँका रचनाएँ।

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत बढ़िया माहिया सुनीता जी 👌👌
आनंद आ गया पढ़कर 😀😀 हार्दिक बधाई !!
बहुत गहरे ताँका , सतीश जी को हार्दिक बधाई !!

सादर
ज्योत्स्ना शर्मा

सुनीता काम्बोज ने कहा…

अनिता जी सादर आभार ,ज्योत्स्ना जी सादर धन्यवाद ।

Vibha Rashmi ने कहा…

ये अच्छी बात गढ़ी
अपनी जोड़ी है
चावल के साथ कढ़ी।
0
शीशा देखा करना
तुम हो थार पिया
हम हैं मीठा झरना।
हाइकु की जुगलबंदी में बहुत मज़ा आ गया । नया प्रयोग भा गया । बधाई ।

नदी ने पूछा
प्रेम करते हो क्या
दिल ने कहा
प्रेम की कलकल
सीखी है तुमसे ही ।
सतीश राठी भाई के ताँका मनभावन हैं । बधाई लें ।

सतीश राठी ने कहा…

धन्यवाद रचनाएं पसंद करने के लिए

Unknown ने कहा…

पूर्णिमा जी माहिया की चटपटी तकरार बहुत अच्छी लगी । और सताश जी आप के सभी ताँका बहुत अच्छे हैं ।यह वाला बहुत भाया - खामोश मन / गम की नदिया में / कागज की नाव सा । आप दोनों को सुन्दर सृजन के लिये बधाई ।

Unknown ने कहा…

सतीश राठी जी सभी ताँका अच्छे हैं ।

सुनीता काम्बोज ने कहा…

आदरणीय लेखक एवं सम्माननीय लेखिकाओं आप सबने टिप्पणी देकर जो हौंसला बढ़ाया उसके लिए आप सबकी ह्रदय से आभारी हूँ ...सादर नमन आप सबके इस स्नेह को ।