रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
प्रिय की याद
रह -रहके आई
फूटी रुलाई
हिचकी नहीं थमी
छाई आँखों में नमी।
2
सोचना पड़ा-
तुम मिले न होते
तो क्या- क्या होता?
प्यासे ही मर जाते
हम नदी किनारे।
3
कभी पिला दो
अधर -सोमरस
मुझे जिलादो,
आलिंगन कसके
सूने उर बसना।
4
घना अँधेरा
घिरा है चारों ओर
तेरी मुस्कान
मेरा नूतन भोर
तुम्हीं हो ओर-छोर।
5
कर दूँ तुम्हें
मैं सुख समर्पित
अपने दुःख
मुझे सब दे देना
वही आनन्द मेरा।
6
यह जीवन
यों स्वर्णिम हो गया
दर्द खो गया
नील नभ में कहीं
जो स्पर्श तेरा मिला।
7
प्यासा गगन
था मेरा यह मन
भटका सदा
सरस धरा तुम
सींचे सूखे अधर।
8
पलकें खुलीं
झरा प्यार -निर्झर
पिया जीभर
ओक बने अधर
सरस मन हुआ।
9
थाती तुम्हारी
प्राण मेरे विकल
अर्पित करूँ
भर -भर अँजुरी
मेरे प्रेम देवता।
10
सृष्टि प्रेम की
सींचती प्रतिपल
आए प्रलय
बूँद थी मैं तुम्हारी
तुम्हीं में हूँ विलय।
14 टिप्पणियां:
Prem ke komal bhav se purit tanka bahut bhavpur hain meri hardik badhai.
बिछोह से मिलन , महामिलन की भावमय प्रस्तुति !
अद्भुत ताँका रचनाएँ , हार्दिक बधाई !
बिछुड़न - मिलन भावके सुन्दर झाँका । बधाई भाई ।
मधुरं मधुरं !
लाजवाब ताँके।
बहुत सुन्दर प्रेम के भावों को संजोए हुए ताँका...
बधाई सर
बहुत भावपूर्ण तांका हैं सभी...पर इस तांका में मानों प्रेम को अपनी एक परिभाषा दे दी...
सोचना पड़ा-
तुम मिले न होते
तो क्या- क्या होता?
प्यासे ही मर जाते
हम नदी किनारे।
मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें |
बहुत सुन्दर
व्यष्टि से समष्टि,बिंदु से सिंधु,इकाई से परमसत्ता के मिलने की आकांक्षा और मिलन की तृप्ति के अद्भुत और भावपूर्ण ताँका।
डॉ0 शिवजी श्रीवास्तव
shivji.sri@gmail.com
विरह-मिलन के ख़ूबसूरत ताँका...हार्दिक बधाई।
सृष्टि प्रेम की
सींचती प्रतिपल
आए प्रलय
बूँद थी मैं तुम्हारी
तुम्हीं में हूँ विलय। प्रेम और दर्शन, आत्मा और परमात्मा के मिलन को दर्शते हुए भावपूर्ण ताँका के लिए बधाई भैया|
बहुत ही भावपूर्ण , बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ।
सादर
बहुत सुन्दर सृजन आदरणीय ... हार्दिक बधाई आपको!
बहुत खूबसूरत...सादर अभिवादन बड़े भैया
प्रेम से प्रेम
मिलन मुखर हो
शब्द शब्द में
भाव भरें मधुर
हर ताँका मोती से। सविता मिश्रा 'अक्षजा'
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन ।
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