1-जानते तो हो
कृष्णा वर्मा
जानते तो हो
नहीं पसंद मुझे
सवार होना
पाल लगी नाव में,
गवारा नहीं
मुझे हवा की मर्ज़ी
मान चलना
झेलूँ आवारगियाँ
मैं क्यों उसकी
भरोसेमंद हुईं
कब हवाएँ
बदलकर रुख़
गिरा दें पाल
छोड़ दे कहीं कश्ती
वो मझधार
जानती हूँ-तुम ना
थामोगे पतवार।
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2-कृष्णा वर्मा
1
ग़म ख़ौफ न
बोझ होती ज़िंदगी
रहती खिली-खिली
होता सुर्ख़ुरू
जीना, समझते जो
मन इक-दूजे का।
2
तुम क्या जानो
जीवन रंगमंच
मैं ऊँचा
कलाकार
छिपा लेता हूँ
कैसे अपनी पीड़ा
हँसी की लकीरों में।
3
जलाए मन
पल-पल यह क्यों
तेरी सोच की आग
कैसे बताऊँ
है पाक मन मेरा
तेरा ही मन मैला ।
4
घुलता रहूँ
कैसे दिखलाऊँ मैं
अंतर्मन अपना
शंका मिटाता
सीना चीर दिखाता
होता राम भक्त सा।
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