ताँका
कृष्णा वर्मा
डॉ.कविता भट्ट
कृष्णा वर्मा
1
तरसा मन
करूँ तुमसे बातें
रूठा क्यूँ रिश्ता
दहके दिन मेरे
जलती रहीं रातें।
2
दे देते यदि
अँजुरी भर प्यार
जी लेते हम
पतझर ऋतु में
बनकर बहार।
3
सिर्फ अपना
प्यार तो समर्पण
ढूँढे क्यों ख़ता
बन जा तू क़ाबिल
बेकार ना आज़मा।
4
यूँ ना तड़पा
और चुप रहके
न पीड़ा बढ़ा
कह ग़म अपने
हर लूँ मैं अँधेरे।
5
हुआ बेरंग
जीवन बिन तेरे
टूटी है आस
पनघट पे बैठी
रही प्यासी ही प्यास।
6
इतनी चाह-
फूलें -फलें संबंध
सच्ची हो वफ़ा
आए नहीं दरार
पलता रहे प्यार।
7
तुम क्या मिले
बने शूल राहों के
फूलों के गुंचे
राहें हुईं आसान
सुख मेहरबान।
-०-
9 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति !
दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!
कविता जी छवि के साथ सुंदर ताँका।
कृष्णा जी उम्दा भाव ।
बधाई।
बहुत सुन्दर रचनाएँ. चित्र पर अंकित ताँका बहुत अच्छा लगा. दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई.
अरे वाह! दोनों रचनाएँ उत्कृष्ट | बधाई स्वीकारें |
सुंदर सृजन।कविता जी, कृष्णा जीबधाई
Sundar prstuti donon rachnakaron ko hardik badhai
बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई!!
बेहतरीन
मन को छू गए सभी ताँका कविता जी व कृष्णा दीदी !
दे देते यदि
अँजुरी भर प्यार
जी लेते हम
पतझर ऋतु में
बनकर बहार। ~ और जीवन में क्या चाहिए!
~सादर
अनिता ललित
एक टिप्पणी भेजें