शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

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डॉoसुरंगमा यादव

1. मन करता

मन करता-
धरती बन जाऊँ
मेघों-सा तुम
उमड़ -घुमड़ के
पोर -पोर में
तरल नेह बन
समाते जाओ
करूँ अवशोषित
बूँद- बूँद मैं
पाऊँ तृप्ति सघन
धरा- समान
करुणा -उपहार
वारती रहूँ
आँचल भर कर
अखिल विश्व पर
-0-
2   मन एकाकी

मन नाविक
ले चल तू मुझको
इतनी दूर
लक्षित न हों जहाँ
पद चिह्न भी
दूर निर्जन वन
एकाकी मन
शान्त करे बसेरा
अन्तर बाह्य
घेरे है कोलाहल
किसे सुनाऊँ
किसकी सुनूँ गाथा
हृदय अकुलाता


4 टिप्‍पणियां:

rameshwar kamboj ने कहा…

दोनों चोका भावपूर्ण एवं नूतन संवेदना से युक्त

dr.surangma yadav ने कहा…

आदरणीय सुशील कुमार जी एवं रामेश्वर कम्बोज जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।

ज्योति-कलश ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति , बहुत बधाई !

Anita Manda ने कहा…

वाह