मंगलवार, 9 जुलाई 2019

873-रे निर्मोही बादल !


सुदर्शन रत्नाकर

बिन बरसे
कहाँ जाते हो तुम
बरस भी लो
आए हो तो बादल,
राह निहारे
तपस्वी पपीहरा
प्यास बुझे
व्याकुल पेड़ खड़े
जल -विहीन
सूख रहे हैं सब
ताल- तलैया
आसमान देखता
कृषकाय वो
बिलखती संतान
नहीं अनाज
मिलने को आतुर
तेरी बूँदों से
समन्दर का पानी,
तरस रहे
उपवन -बगिया
बरसो अब
रे निर्मोही बादल !
बिन नीर के
प्यासी -प्यासी है धरा
प्यासा जनमानस।

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16 टिप्‍पणियां:

Manju Mishra ने कहा…

कहाँ जाते हो तुम
बरस भी लो
आए हो तो

वाह सुदर्शन जी ! बहुत ही सुन्दर ...

bhawna ने कहा…

बरसो अब
रे निर्मोही बादल !

...... हृदय से निकली भावपूर्ण पुकार।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दीदी।

सादर,
भावना सक्सैना

Sudershan Ratnakar ने कहा…

आभार मंजू जी ,भावना जी

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

बहुत बढ़िया चोका सृजन है हार्दिक बधाई स्वीकारें |

Sudershan Ratnakar ने कहा…

आभार सविता जी

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

मेघों को सम्बोधित,उदात्त मानवीय भाव-बोध का सुंदर चोका।हार्दिक बधाई।

dr.surangma yadav ने कहा…

जन कल्याण के लिए मेघों की मनुहार करता सुन्दर चोका।बधाई आपको ।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

कितना प्यारा चोका...बहुत बधाई आपको...|

Sudershan Ratnakar ने कहा…

शिवजी,सुरंगमा जी, प्रियंका जी सुंदर प्रतिक्रिया देने के लिए आप सब का हार्दिक आभार ।

Dr. Purva Sharma ने कहा…

भावपूर्ण सृजन
हार्दिक बधाइयाँ

Sudershan Ratnakar ने कहा…

आभार पूर्वा जी

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर चोका. बहुत बधाई.

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर चोका... हार्दिक बधाई आपको।

Kamlanikhurpa@gmail.com ने कहा…

मन को मोह लिया उलाहने भरे प्यारी पुकार ने ....
अनूठी शैली आदरणीय रत्नाकर दीदीजी



बिन बरसे
कहाँ जाते हो तुम
बरस भी लो
आए हो तो बादल,

Jyotsana pradeep ने कहा…


बहुत ही सुन्दर सृजन .... हार्दिक बधाई आद. दीदी !!

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सचमुच! बादलों ने तरसा दिया है इस बार ! बहुत अच्छा चोका आदरणीया दीदी जी!

~सादर
अनिता ललित