शशि पाधा
1
चुप थी मैं भी
और मौन तुम भी
तुम्हारा स्पर्श
कुछ पिघला गया
मौन मुखर हुआ।
2
मेघा गरजे
गाने लगी बदली
राग
मल्हार
शाख- शाख पी रही
रिमझिम
फुहार।
3
आज भोर ने
घबराते-लजाते
ओढ़ ली धूप
मौसम गुनगुनाया
स्वर्ण सौगात लाया ।
4
शांत झील में
तैरना चाँदनी का
या कोई गीत
पहाड़ में गूँजना
सौन्दर्य-इन्द्रजाल।
रहूँ ,न रहूँ
फर्क नहीं पड़ता
क्या किया मैंने
वही है मेरा नाम
वही पहचान भी।
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14 टिप्पणियां:
मधुर महकती रचनाएँ
ताजगी लिए हुए सुंदर तांका।बधाई शशि जी
बहुत अच्छी रचनाएँ, बधाई शशि जी।
शाख शाख पी रही.... कितनी बार पढ़ चुकी.... प्यास ही नही बुझ रही.....अति सुंदर।
Bahut sunder likha hai badhayi bahut badhayi
Rachana
मौन मुखर हुआ और राग मल्हार गूंज उठे .....
अच्छी रचनाएँ , बधाई ।
बहुत सुन्दर रचनाएँ ।बधाई आपको ।
मनभावन रचनाएँ ... बहुत सुंदर
बहुत मनमोहक रचनाएँ ....हार्दिक बधाई आद. शशि जी !!
शशि जी वर्षा ऋतु के भीगे भीगे हाइकु ।सुखद ।बधाई ।
बहुत प्यारे ताँका! हार्दिक बधाई शशि दीदी!
~सादर
अनिता ललित
बहुत बढ़िया रचना शशि जी हार्दिक बधाई |
बहुत सुंदर ताँका...बधाई शशि जी।
प्यारे ताँका के लिए बहुत बधाई शशि जी
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