माहिया
ज्योत्स्ना प्रदीप
1
अब प्रेम बना सौदा
मोहक गमले में
ज्यों ज़हरीला पौधा ।
2
धन की सोपान बड़े
मीत मिले पल में
मन में ना प्रीत जड़े !
3
हर नाता काला है
मन के कोने में
लोगों के जाला है।
4
पल ऐसा आता है
कल का भोला घन
रुत को
छल जाता हैं।
5
इक फूल मनोहर है
अपने काँटों से
घायल वो अक्सर है।
6
ये कैसी है माया
पावन गंगा ही
धोती पापी-काया !
9 टिप्पणियां:
प्रेम बना सौदा,हर नाता काला है,रुत को छल जाता है....बेहतरीन ज्योत्स्ना जी, आपको बधाई!
सुंदर अर्थपूर्ण माहिया
हर नाता काला है ... , एक फूल मनोहर है अति मनभावन माहिया हैं ज्योत्स्ना जी हार्दिक बधाई |
अर्थपूर्ण रचनाधर्मिता। हार्दिक बधाई।
सुंदर माहिया ज्योत्स्ना जी
हार्दिक शुभकामनाएँ
मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार करती हूँ... आप सभी साथियों का भी हृदय से धन्यवाद !
waah वाह वाह एक से बढ़कर एक माहिया बधाई ज्योत्स्ना जी
सत्य को दर्शाते अत्यंत ख़ूबसूरत माहिया! सुंदर सृजन हेतु बहुत बधाई ज्योत्स्ना जी!
~सादर/सस्नेह
अनिता ललित
शशिजी,सखी अनिता जी,प्रोत्साहित करने के लिए हृदय से आभार आपका !
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