ऋता शेखर 'मधु'
1
गुलमोहर
छायादार भूतल
तपे ग्रीष्म में
तलवों की राहत
जीतने की चाहत।
2
खिलते रहे
उपवन सुमन
काँटों के संग
पौधों का अनुबंध
अक्षुण्ण है सुगंध।
3
करते पार
हवा परतदार
नभ के तारे
आते टिमटिमाते
बालक मुस्कुराते।
4
नन्ही- सी दूब
सड़क के किनारे
तोड़ कंक्रीट
चुप से ताक रही
माटी से झाँक रही।
5
नन्ही- सी जान
पीठ पर खाद्यान्न
शीत या ग्रीष्म
पंक्तिबद्ध लगन
चीटियाँ हैं मगन।
6
नभ में दिखे
कभी झील में छुपे
स्वर्ण से जड़ा
सूर्य का रथ भला
किसके रोके रुका।
7
सिंधु- लहर
आरोह -अवरोह
कागज़ी नाव
विनम्रता से बही
दूर तक निर्बाध।
8
लौ करे नृत्य
नटखट पवन
बढ़ाती गति
लौ झुक -झुक जाती
स्वयं को है बचाती।
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17 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत। जितनी बार पढ़े और अधिक सुंदर लगे!आपको बहुत बहुत बधाई ऋता जी!
बहुत सुंदर ताँका , सूक्ष्म दृष्टि से रचे हुए ताँका की बधाई।
सुन्दर सृजन
बेहद मन भावन ताँका रचे हैं ऋता जी सुन्दर भावों से परिपूर्ण हैं हार्दिक बधाई |
एक से बढ़कर एक सुंदर ताँका
विशेषतः - नन्ही-सी दूब..., नन्ही- सी जान...,लौ करे नृत्य....
हार्दिक शुभकामनाएँ ऋता जी
प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार प्रीति जी।
प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार आ0 रमेश सोनी जी।
प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार आ0 सुशील जोशी जी।
प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार आ0 सविता जी।
प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार प्रिय पूर्वा जी।
अतीव सुंदर व पठनीय।
बहुत सुन्दर ताँका, बहुत-बहुत बधाई ऋता जी।
सुंदर भावों से सुसज्जित मन मोहक ताँका।
मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया।
सादर~
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
वाह ... बहुत सुन्दर चुटकियाँ ... लाजवाब हाइकू का अंदाज़ ...
वाह बहुत ही शानदार सृजन
बहुत सुंदर...सूर्य का रथ भला/किसके रोके रुका... सभी ताँका सुंदर,प्रभावी एवम जिजीविषा से परिपूर्ण ..चाहे नन्ही दूब हो,पंक्तिबद्ध चींटियाँ हों या नटखट पवन के सामने नृत्य करती लौ हो सभी विजयी भाव से आगे बढ़ रहे हैं।बहुत बहुत बधाई ऋता जी।
एक से बढ़कर एक सुंदर,मनभावन ताँका। बधाई ऋता जी
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