सेदोका
डॉ. सुरंगमा यादव
1
लौट आ नदी !
तटबंधों को तोड़
बहोगी कब तक
विप्लव ढाके
आख़िर क्या पाओगी ?
पीछे पछताओगी ।
2.
हवा के संग
आलिंगन में रत
पात-पात टहनी
मर्मर-ध्वनि
सुना रही अपनी
कुछ नई-पुरानी ।
3.
संकल्प सारे
समय के सहारे
छोड़कर जो बैठा
हार मानता
युद्ध से पहले ही
हथियार डालता ।
4.
घना अँधेरा
दूर कहीं जलता
छोटा-सा एक दीप
देता मन को
उजियारे से ज़्यादा
आशा और सहारा ।
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14 टिप्पणियां:
विविध भावों के सुंदर सेदोका। बधाई
बहुत सुन्दर भावों की रचनाएँ ! सुरंगमा जी बधाई !
हवा के संग
आलिंगन में रत
पात-पात टहनी
मर्मर-ध्वनि
सुना रही अपनी
कुछ नई-पुरानी ।
यह विशेष सुन्दरे लगा
हवा के संग, संकल्प सारे....बेहद खूबसूरत सेदोका, बधाई सुरँगमा जी!
घना अँधेरा
दूर कहीं जलता
छोटा-सा एक दीप
देता मन को
उजियारे से ज़्यादा
आशा और सहारा ।
बहुत सुंदर,विविध मनोभावों की अभिव्यक्ति करते सुंदर सेदोका,बधाई सुरंगमा जी।
सुंदर सेदोका , बधाई , शुभकामनाएँ ।
.....उजियारे से ज्यादा
आशा और सहारा ।
सुन्दर सृजन
सुंदर सृजन
हार्दिक शुभकामनाएँ
अतीव सुंदर
चारों सेदोका बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण! हार्दिक बधाई सुरंगमा जी!
~सादर
अनिता ललित
बहुत सुंदर सृजन सुरंगमा जी बहुत बधाई।
सुंदर और भावपूर्ण सेदोका।
हार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर।
कहाँ से पा लेती हो इतने अनमोल विचार,
शब्द नहीं हैं कि कैसे प्रकट करूं आपका आभार,
इतनी मार्मिकता से फूटें है आपके हृदय के उदगार | ढेर सारी बधाई ! श्याम हिन्दी चेतना
सुरंगमा जी के भावमय सदोका बहुत भाये । हार्दिक बधाई लें ।
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