गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

949-पट्टे का दर्द

सुदर्शन रत्नाकर

मालकिन जब भी कहती हैं, "कूरो, चलो घूमने चलें।" मेरा मन बल्लियों उछलने लगता है। एक यही तो समय होता है जब मैं आज़ादी की साँस ले सकता हूँ लेकिन मेरी आधी उत्सुकता वहीं समाप्त हो जाती है, जब वह कहती हैं, "कूरो, अपना पट्टा लाओ, पहले पट्टा बाँधेंगे फिर बाहर चलेंगे।" सारा दिन मुँह उठाये एक कमरे से दूसरे कमरे में घर के बंदों को सूँघता घूमता रहता हूँ। बाहर से कोई आता है तो मैं अजनबी को देख कर भौंकने लगता हूँ तब मैडम मुझे कमरे में बंद कर देती हैं और यह सजा घंटों चलती है। खाना नहीं खाता तो कहती हैं, खाना नहीं खाओगे तो नीचे कुत्तों को दे आऊँगी। " भूखे रहने के डर से खा लेता हूँ। कभी-कभी बालकनी में जाता हूँ तो वहाँ लगी लोहे की सलाख़ों में से सिर निकाल कर नीचे झाँकने की कोशिश करता हूँ चौबीसवीं मंज़िल से मुझे कुछ दिखाई तो देता नहीं, सिर और चकराने लगता है। बस नीचे से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें सुनाई देती हैं। इसलिए पट्टा बाँध कर ही सही, बाहर जाने को तो मिलता है।

लिफ़्ट से निकलते ही तेज़ कदमों से बाहर जाने की कोशिश करता हूँ। कितना अच्छा लगता है। मेरे जैसे और भी अलग-अलग नस्लों के कुत्ते अपने-अपने मालिकों के साथ घूमते मिल जाते हैं। पर मैडम मिलने नहीं देती। बस अपनी सहेली के कुत्ते से बात करने देती हैं। "कूरो, देखो ऑस्कर तुम्हारा दोस्त, मिलो इससे।" पर मुझे ऑस्कर अच्छा नहीं लगता। बड़ा अकड़ू है। है भी तो मुझसे कितना बड़ा। खेलते हुए मुझे दबोच लेता है। कई बार तो खरोंचें भी मार देता है। अभी तो अच्छा है, मेरे बाल घने हैं। चोट कम लगती है।

मैडम प्यार तो करती हैं लेकिन मुझे जो अच्छा लगता है वह नहीं करने देतीं। मेरा दिल चाहता है वह मेरा पट्टा खोल दें और मैं भाग कर अपने दोस्तों से मिल लूँ। जानते हैं आप मेरे दोस्त कौन हैं। अरे! वही जिनकी आवाजें मैं बालकनी से सुनता हूँ। मुझे नीचे आया देख वह मेरे आगे-पीछे चलने लगते हैं। मुझसे मनुहार करते हैं। मैं भी उनसे लिपटने, खेलने की कोशिश करता हूँ। पर मैडम मेरा पट्टा खींच कर कहती हैं, "नो कूरो, डर्टी डॉगी।" मैं उनकी बात कहाँ सुनता हूँ। पट्टा खींचते-खींचते भी उनके साथ खेल लेता हूँ, बात कर लेता हूँ। जब वह मेरा पट्टा देख कर हँसते हैं तो मुझे बहुत ग़ुस्सा आता है। मैं कहता हूँ, "पट्टा है तो क्या हुआ, अच्छा खाना तो मिलता है।" पर वह सब-से बड़ा ब्राउनी हमेशा कहता है, पट्टे से तो भूखा रहना बेहतर है। " शायद वह ठीक कहता है। कितनी आज़ादी से घूमते हैं ये सब, लेकिन उनके भूखे रहने से मैं दुखी हो जाता हूँ, इसलिए कई बार मैं अपना खाना जानबूझकर नहीं खाता। तब मैडम वही खाना इनको दे देती हैं। मुझे अच्छा लगता है। जब मेरे दोस्तों को भरपेट खाना मिल जाता है, तब मैं अपने पट्टे के दर्द को भूल जाता हूँ।

मूक ये प्राणी

विचित्र है मित्रता

सीखो मानव


12 टिप्‍पणियां:

Anita Manda ने कहा…

वाह
सुंदर है ये

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

कूरो का भूखा रहकर अपने अन्य साथियों को भोजन दिलाना अद्भुत दृष्टिकोण है । अच्छा है- बधाई ।

bhawna ने कहा…

एक मूक प्राणी के भावों को उकेरता भावपूर्ण हाइबन। बहुत सुंदर दी।

Satya sharma ने कहा…

बहुत ही सुंदर , भावपूर्ण हाइबन।
हार्दिक बधाई दी

Dr. Purva Sharma ने कहा…

सुन्दर हाइबन
सच में मित्रता निभाना सिर्फ मनुष्य को ही नहीं आता मूक प्राणियों को भी आता है
हार्दिकशुभकामनाएँ सुदर्शन जी

Jyotsana pradeep ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा आदरणीया दीदी!

"कितनी आज़ादी से घूमते हैं ये सब,लेकिन उनके भूखे रहने से मैं दुखी हो जाता हूँ,इसलिए कई बार मैं अपना खाना जानबूझकर नहीं खाता। तब मैडम वही खाना इनको दे देती हैं। मुझे अच्छा लगता है। जब मेरे दोस्तों को भरपेट खाना मिल जाता है,तब मैं अपने पट्टे के दर्द को भूल जाता हूँ।"
ये पंक्तियाँ पढ़कर तो आँखें नम हो गईं दीदी... मूक प्राणी की पीड़ा और नेकी को बड़े ही सलीके से दर्शाता ख़ूबसूरत हाइबन। दिल से बधाई आपको!

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

कुरो की भावनाओं के माध्यम से मित्रता का संदेश देता बहुत सुंदर हाइबन।आदरणीय सुदर्शन जी को बधाई।

Dr.Mahima Shrivastava ने कहा…

सुंदर हाइबन

dr.surangma yadav ने कहा…

बहुत सुन्दर हाइबन।

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर हाईबन रचा है सुदर्शन जी ने , आज़ादी सभी को प्रिय होती है और मित्रता की भावना का सुंदर चित्रण किया हैहार्दिक बधाई।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

प्रोत्साहित करती प्रतिक्रियाओं के लिए आप सबका हृदय तल से आभार।

Krishna ने कहा…

बेहद सुंदर हाइबन।
हार्दिक बधाई दी।