`
1-मन तेरा बरसाना
ज्योत्स्ना प्रदीप
1
लो! फागुन आया है
सरहद पर सजना
ये मन बौराया है।
2
ये ढोलक, मंजीरे
सखियों की टोली
गाती धीरे- धीरे।
3
ये टेसू भी सीले
तुम जो आ जाओ
मन खुशियों में जी ले।
4
पलकें तो हैं भारी
सपना साजन का
मिलने की तैयारी।
5
सखियाँ कसती ताना
गजरों की ढेरी
कब लाए दीवाना !
6
वो सुधियों का मेला
साजन क्या जानें
इस दिल ने क्या झेला।
7
यादें बिखरी-बिखरी
पिय सैनिक मेरा
कुछ पाती तो लिख री।
8
लो!अपने घर आया
झोली में खुशियाँ
कितनी सारी लाया।
9
ग़म के आँसू सारे
पी ने पी
डाले
लब पर खुशियाँ धारे।
10
मिलकर खेलें होरी
फिर से बन जाएँ
ब्रज के छोरा- छोरी।
11
मन तेरा बरसाना
राधा मैं तेरी
रंगों को बरसाना।
-0-[चित्र- प्रीति अग्रावल ]
-0-
बेस्ट
फ्रेंड
डॉ.
पूर्वा शर्मा
मन में एक अजीब-सी बैचैनी थी उससे मिलने के बाद । तकरीबन पूरे एक वर्ष के बाद उसे देखा। उसका मुग्ध करना वाला चेहरा मुरझाया-सा लगा, जैसे कोई फूल शाख से खिर जाने पर मुरझा जाता है। सदा हँसते-मुस्कुराते उस नूरानी चेहरे पर कोई नूर नहीं, हाँ वो हल्की-सी मुस्कान जरूर दे रही थी ।
उसकी इस मुस्कान से इतनी तसल्ली हो गई कि उसे मुझे देखकर ख़ुशी हुई । उसकी बुलंद आवाज़ पार्टी में जान भरती थी, लेकिन उस आवाज़ में अब जैसे जान ही नहीं । जैसे-तैसे वो आवाज़ मेरे कानों तक पहुँची...धीमी.. बहुत धीमी । पिछले कई वर्षों में शायद उसे पहली बार इतनी धीमे बोलते हुए सुना । वो सदा ही खिलखिलाती रहती थी । हमेशा ऊर्जा से भरी, सबको ऊर्जा देने वाली बहुत बेबस नज़र आई । बेबसी इतनी कि तेज़-तर्राट शेरनी की तरह दौड़ लगाने वाली अब चल भी नहीं पा रही थी । उसके बेजान पैर और ज़रा-सी हरकत करता शरीर, उसके दर्द की दास्तान खुद ही कहे जा रहा था । उसकी इस स्थिति को देखकर रौंगटे खड़े हो गए, मन में उथल-पुथल मच गई, आँखें भर आई लेकिन पता था कि उसके सामने यह भाव को प्रकट किए तो शायद वह भी फूट पड़ेगी । बड़ी मुश्किल से खुद को सँभालते हुए उसे दिलासा दिया कि वो शीघ्र ही बिलकुल ठीक हो जाएगी । काफ़ी देर उसके पास बैठकर उससे बात करने के पश्चात् वापस लौटते हुए मन में बस उसका ही चेहरा, उसके ही ख़याल उठने लगे । मन बस प्रार्थना कर रहा था कि वो जल्दी ही ठीक हो जाए लेकिन यह कमबख्त दिमाग कुछ और ही बोले जा रहा था । हृदय में बस उसके लिए प्रार्थना ही चल रही थी और तीन-चार दिनों में ही अचानक वो समाचार मिला जिसके मिलने उम्मीद इतनी जल्दी तो कदापि नहीं थी । उसकी जीवन-यात्रा समाप्त हो चली, अब तो बस उसकी बातें-यादें रह गई । वह इस भौतिक दुनिया को भले ही छोड़ चली तो क्या, सबके दिलों में तो उसकी स्मृतियाँ सदा ही बसी रहेगी । कहाँ सोचा था कि यह साथ इतनी जल्दी खत्म हो जाएगा? उसकी एक बात बार-बार याद आ रही कि “तू ही मेरी बेस्ट फ्रेंड है”, वह सभी को अपना बेस्ट फ्रेंड कहती थी । आज एक बात समझ आई – जीवन का क्या भरोसा ? कल हो न हो !
§ पिंजरा तोड़
उड़ चली है मैना
जाने किधर ?
§ जहाँ जाएगी
चहचहा उठेगा
नया आँगन ।
-0-
15 टिप्पणियां:
यादें बिखरी-बिखरी
पिय सैनिक मेरा
कुछ पाती तो लिख री।
लिख री की सुंदरता अद्भुत है। बधाई
पूर्वा जी मार्मिक हाइबन।
सभी हाइकु एक से बढ़कर एक सुंदर ।बधाई ज्योत्सना जी।
मर्मस्पर्शी हाइबन। बधाई पूर्वा जी।
मन बौराया है, ये टेसू भी सीले, कुछ पाती तो लिख री, पी ने पी डाले, बहुत सुंदर सृजन ज्योस्तना जी!
जहाँ जाएगी, चहचहा उठेगा, नया आँगन,सुंदर मार्मिक हाइबन पूर्वा जी!
आप दोनों को बधाई!
सभी माहिया बहुत ख़ूबसूरत...ज्योत्स्ना जी हार्दिक बधाई।
हृदयस्पर्शी हाइबन के लिए पूर्वा जी को बहुत-बहुत बधाई।
बहुत ही सुंदर माहिया।
मर्मस्पर्शी हाइबन।
आदरणीया ज्योत्स्ना जी एवं पूर्वा जी को हार्दिक बधाई।
सादर
सुंदर माहिया ,भावपूर्ण हाइबन ।बधाई ज्योत्सना जी एवं पूर्वा जी।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 28 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मार्मिक हाइबन के लिये पूर्वा जी को बधाई।ज्योत्स्ना प्रदीप जी के समस्त माहिया बेहद भावपूर्ण, सरस एवं हृदयस्पर्शी हैं,प्रीति जी का चित्र प्रतीकात्मक
है दोनो को बधाई।
मन तेरा बरसाना
राधा मैं तेरी
रंगों को बरसाना।
होली की अच्छी रचनाएँ- ज्योत्सना जी बधाई ,
बेस्ट फ्रेंड एक अच्छा हाइबन ,जिंदगी का भरोसा वाकई क्या है- बधाई।
होली की शुभकामनायें, सुंदर रचना
मिलकर खेलें होरी
फिर से बन जाएँ
ब्रज के छोरा- छोरी।...सुन्दर रचना...होली की शुभकामनाएँ
वाह! सखी ज्योत्स्ना जी! क्या ही मनमोहक माहिया रचे हैं! बहुत ख़ूब! हार्दिक बधाई आपको!
पूर्वा जी ... मन भर आया! सचमुच! जीवन का कोई भरोसा नहीं! मार्मिक हाइबन! बहुत बधाई आपको इस सृजन के लिए!
~सादर
अनिता ललित
ज्योत्सना जी को सुन्दर माहिया के लिए बधाई
पूर्वा जी, आपके हाइबन ने पिछले बरस के मेरे घावों को जैसे ताज़ा कर दिया जब मेरी बहन जैसी सखी अचानक हम सबको छोड़ कर चल दी और lockdown के चलते मैं अंतिम बार उन्हें देख भी न पाई | बरबस आँसू भर आए...|
एक टिप्पणी भेजें