सेदोका-नारी
सुदर्शन रत्नाकर
1
नारी
की सोच
सागर-
सी गहरी
फिर
भी वो बेचारी
क्यों
ऐसा होता
तिल-
तिल जलती
खुशियाँ
वो बाँटती
2
छुपा
लेती है
भीतर
ही भीतर
मन
की सारी पीड़ा
वाह
री नारी
गरल
सदा पीती
फिर भी मुस्कुराती
3
रहती
शांत
धधके
चाहे ज्वाला
भीतर
जितनी भी
भावनाओं
की
करती
समझौता
सपने
ले उधार।
4
अल सुबह
ठिठुरती औरतें
सरदी का मौसम
बीनें कचरा
पीठ पे लादे बोझ
अभिशप्त होने का
5
नैनों में पानी
अधरों पे मुस्कान
घुटन में रहती
नहीं कहती
अभिशप्त जीवन
नारी आज भी जीती।
6
चुप न रह
मुखर होना सीख
मन की बात कह
घुटे न साँस
शक्ति को पहचान
अपना हक़ जान।
7
लुटती रही
नारी हर काल में
भावना के अस्त्र से,
बँधती रही
ममता की डोर से
फिर भी जीती रही।
8
सीमा होती है
हर अत्याचार की
कब तक सहोगी?
उठ, जाग जा
स्वयं को पहचान
दुर्गा का रूप दिखा।
9
घूमती
रही
फिरकी
की तरह
जिधर
हवा बही
जीवन
भर
पतंग
की तरह
डोर
से बँधी रही।
10
जूझती
रही
अकेली
तूफ़ानों से
कठिन
है डगर
पाँवों
में छाले
पर
चलती रही
हारी
नहीं जीवन।
-0-सुदर्शन
रत्नाकर ,ई-29,नेहरू ग्राउंड ,फ़रीदाबाद -121001
मो.9811251135
10 टिप्पणियां:
स्त्री जीवन के संघर्षों को समाहित किए हुए सुंदर सेदोका। बधाई
नारी जीवन का मार्मिक चित्रण ...हार्दिक बधाई आपको।
स्त्री जीवन का चित्रण करते भावपूर्ण सेदोका।
हार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर-
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
चुप न रह/मुखर होना सीख...नारी नियति के चित्रण के साथ ही उन्हें त्रासद स्थितियों से मुक्ति के सन्देश देते सुंदर सेदोका।हार्दिक बधाई
नारी जीवन में दर्द का मार्मिक चित्रण से उपजे सेदोका अच्छे है- बधाई।
नारी की मार्मिक पीड़ा को बड़ी ही सुन्दरता के साथ चित्रित किया है सभी सेदोका में आदरणीया दीदी। हार्दिक बधाई आपको।
हर वर्ग की स्त्री की व्यथा लगभग एक-सी है. मार्मिक और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए रत्नाकर जी को साधुवाद.
नारी की पीड़ा का जीता जागता चित्रण है ,सुदर्शन जी सुदर सेदोका हैं
पुष्पा मेहरा
यह दुनिया कितनी भी आगे बढ़ जाए, हम कितने भी उन्नत और प्रगतिशील होने का दावा कर लें पर कहीं न कहीं नारी की स्थिति अंदरूनी रूप से आज भी वाही है जो सदियों पहले थी | इन्हीं को बहुत सहज और सार्थक रूप से प्रस्तुत किया है आपने अपने इन सेदोका में...मेरी ढेरों बधाई |
घूमती रही, फिरकी की तरह.....नारी जीवन और उसके उत्त्थान पर सुंदर सेदोका, सुदर्शन दी बधाई स्वीकारें!
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