बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

1109-तुममें छिप जाती

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

 

तुमने मला

मेरे माथे पर जो

दुआ का लेप

मिट गई थकन

मेरा ये मन

अचानक उछला

छोटे बच्चे- सा

छूने को आसमान

बढ़ने लगा

मुझमें धरती- सा

बड़ा हौसला

कोई भी ओर- छोर

जिसका नहीं,

अब राह में कहीं

आँधी- तूफान

मेरी घेराबन्दी को

आ भी गए तो

क्या बिगाड़ेंगे भला

हाथ जोड़के

मेरे सामने बला

खड़ी हो गई

बनकर बेचारी,

जिसने मुझे

पल- पल पे छला

तुम्हारे आगे

लेकिन कहाँ वश

उसका चला

बुरी तरह हारी

सुरक्षित हूँ

मैं सीप में मोती- सी


बाँध लेता है

तुम्हारा आलिंगन

और देता है

मुझे नया स्पन्दन

आकरके मैं

तुममें छिप जाती

तब मैं पाती

एक और जीवन

सच बताऊँ-

मेरी प्राणवायु है

तुम्हारी छाती

आज की दुनिया में

मीत कहाँ है

किसी के पास अब

तुम्हारे जैसी


प्रेम में सब कुछ

लुटा देने की

यह दुर्लभ कला

देखकरके

तुम्हारा सच्चा भाव

भर आया है गला।

-0- [सभी चित्र गूगल से साभार]

5 टिप्‍पणियां:

Sonneteer Anima Das ने कहा…

सुंदर भावपूर्ण सृजन...🌹🙏

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता। सुदर्शन रत्नाकर

भीकम सिंह ने कहा…

खूबसूरत चोका रचने के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ।

dr.surangma yadav ने कहा…

भावपूर्ण सृजन ।हार्दिक बधाई।

बेनामी ने कहा…

सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें