भीकम सिंह
बिटोड़ों पे चढ़के
घणे तड़के
कहकहा लगाए
मधुमक्खियाँ
शहद को भटकें
भिनभिनाएँ
गाँवों के तालाब पे
कुछ बगुले
योग -अभ्यास हेतु
ताड़ासन में आए।
गाँव- 47
कृषि मंत्रालय से
पूछना कोई
शहर के जूतों से
खलिहान क्यों
धूल में अटा हुआ
जलाशयों का
मुँह क्यों पटा हुआ
गाँव आखिर
अपनी ही जड़ों से
क्यों रहा कटा हुआ ।
गाँव- 48
झाँक रहा है कुआँ
मुर्दा-सा पड़ा
ढूँढ रहा दूब के
मिट्टी पे चिह्न
और पूछ रहा है-
सूखे खेतों से
उर्वरता का ठिया
पानी की हदें
बनाती थी जो नाली
कहाँ गई ? वो वाली
।
गाँव - 49
तंग रास्ते खेतों के
औ-अल्हड़-सी
युवा पगडण्डियाँ
सरसों- संग
धूप सेकते खेत
वहीं पसरी
बेफिक्र-सी बस्तियाँ
स्वेद बहाती
ऐसी-वैसी हस्तियाँ
तलाशती मस्तियाँ ।
गाँव - 50
समझाने पे गाँव
कई ढंग - से
कहाँ, कैसे और क्यों
बदरंग - से
जमीदार भी रहे
जहाँ तंग - से
मेड़ों को बना ढाल
लड़े जंग - से
खेतों में बीज रोपे
क्यों अधूरे मन - से ।
गाँव - 51
देखके घुसपैठ
गाँव के गाँव
खेतों को फलाँग के
बढ़ते रहे
नीतियों के विरुद्ध
ढूँढते रहे
मजबूत- से तर्क
और मिट्टी में
कर ना पाए फर्क
अनुर्वर ही रहे ।
8 टिप्पणियां:
वाह! बहुत सुन्दर चित्रण। हार्दिक बधाई सर।
बहुत सुंदर चोका हार्दिक बधाई सर आपको।
सादर
सुरभि डागर
बहुत ही सुन्दर।
हार्दिक बधाई आदरणीय भीकम सिंह जी को।
सादर
मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का धन्यवाद।
डॉ सुरंगमा यादव जी , सुरभि डागर जी और रश्मि विभा त्रिपाठी जी का हार्दिक आभार ।
एक से बढ़कर एक चोका!
~सादर
अनिता ललित
वाह, हमेशा की भाँति ग्राम्य जीवन के सौंदर्य और उनकी समस्याओं को उकेरते सुंदर चोका।अभिनव बिम्ब,बगुलों के ताड़ासन करने के बिम्ब ने मन मोह लिया।बधाई डॉ. भीकम सिंह जी।
अनिता ललित जी और डॉ शिवजी श्रीवास्तव जी का हार्दिक आभार ।
बहुत बढ़िया चोका, हार्दिक बधाई
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