रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
चिड़िया पूछे-
कहाँ है दाना -पानी
बड़ी हैरानी
फिर मैं कैसे गाऊँ ?
आकर तुम्हें जगाऊँ ।
2
दो घूँट पानी
चुटकी भर दाने
दे दो मुझको
आ जाऊँगी मैं नित
हर भोर में गाने ।
3
जगे गगन
खिलता है आँगन
ज्यों उपवन
पंछी गीत सुनाएँ
आरती बन जाए ।
4
चिड़िया पूछे-
बता पेड़ क्यों काटे
घर था मेरा
अधिकार क्या तेरा
मर्यादा सब खोई ।
5
काटे हैं वन
धरती का जीवन
सिमट गया
नदिया भूखी-रूखी
लगती विकराल ।
6
नीड़ है खाली
झुलसे तरुवर
बरसी आग
पसरा है सन्नाटा
विषधर ने काटा ?
7
बिखरी रेत
चिड़िया है नहाए
मेघ भी देखे
चिड़िया यूँ माँगे है
सबके लिए पानी ।
-0-
16 टिप्पणियां:
सुन्दरम-मार्मिक ताँका
इन प्रश्नों के साथ प्रतिदिन जूझती हूँ 🌹🙏अति मर्मस्पर्शी सर.... 🙏🌹बस स्वार्थी मानव को यह समझमें आ जाए 🙏🌹
बहुत ही सुंदर व मार्मिक ताँका , बधाई आपको।
विवशता का बोध कराते सवाल, बेहतरीन ताँका, हार्दिक शुभकामनाएँ सर ।
मर्मस्पर्शी
सवाल कई , क्यों हल नहीं?
बहुत सुंदर तांका आदरणीय भाई साहब, विशेषतः बिखरी रेत...
धन्यवाद!
हिंदी ताँका में इस नवाचार का स्वागत है।
सभी ताँका अच्छे हैं, इसी प्रकार मार्गदर्शन की आपसे, सभी को प्रतीक्षा रहती है-बधाई।
अत्यंत मर्मस्पर्शी प्रश्न। मानव स्वार्थ की सीमा पर कहाँ तक जाएगा? उत्कृष्ट सृजन के लिए हार्दिक बधाई।
सुदर्शन रत्नाकर
बहुत ही मार्मिक ताँका।
काश इन सारे सवालों का जबाव आज का आदमी अपने स्वार्थ की सीमा से परे जाकर ढूँढ पाता।
उत्कृष्ट सृजन की हार्दिक बधाई 💐🌷🌹
सादर
मनुष्य कितना भी इन सवालों से बच ले,उसे एक न एक दिन इनका सामना करना ही होगा, जितना वह देर करेगा संकट उतना ही गहराएगा।उत्कृष्ट सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।
यथार्थ चित्रण करते सभी ताँका! उत्कृष्ट सृजन!
जिस मानव को ईश्वर ने बुद्धि से नवाज़ा है, वो उसे सद्बुद्धि भी अता करे!
~सादर
अनिता ललित
आपकी सार्थक टिप्पणियों के लिए हृदय से आभार
बहुत मर्मस्पर्शी ताँका...हार्दिक बधाई भाईसाहब।
बेहतरीन रचनाएँ
बधाई गुरुवर
कटु सत्य को उजागर करती बेहतरीन रचना
पसरा सन्नाटा... क्या विषधर ने काटा ? अप्रतिम
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