रविवार, 16 जुलाई 2023

1126-गाँव

 भीकम सिंह 



 गाँव  - 76

तुम शहर !

घात लगा-लगाके

जाँचते रहे 

दबोचने के लिए 

खेत के गेहूँ 

चूस लेने को सारा

गाँव का लहू 

झपटने को सारे 

सुख - औ- चैन

वो मस्ती वाली सैन 

वो लम्बी- लम्बी रैन ।

 

गाँव- 77

 

हर खेत से 

आवाजें आ रही हैं

पेड़ों की जड़ें

सब सुना रहीं हैं 

हवा को कुछ 

धरा को सब कुछ 

छुट्टी के दिन

शहरों से आते हैं 

स्वेद में भीगे 

पचासेक साल के 

व्यवस्थित चाल के 

 

गाँव  -  78

 

पीड़ा से भरा 

खेत अधजगा है 

औंधा पड़ा है 

आँसुओं को छिपाए 

खोज रहा है 

शस्यों की परछाई 

खुदी नींव के

गड्ढों में गिरा हुआ 

सह रहा है 

नगरों की क्रूरता 

थोड़ा-सा बचा हुआ 

 

गाँव  - 79

 

शाम झाड़के

खलिहान से उठा 

कंधे पे रखा

संतोष का अँगोछा 

आँखें मूँदके 

मुखाकृति को पोंछा 

स्याह हो गया 

धूसर- सा अँगोछा 

खेतों में लगे 

जुगनू ठुमकने 

याद आ अपने 

 

गाँव  - 80

 

खेतों के बाद 

शुरू होगा बाज़ार 

कहाँ जाएँगे 

विस्थापित सियार

बस्ती पार के 

झींगुरों की आवाजें 

बुलाती हुई 

करेंगी इंतज़ार 

कभी-कभार

पाने के लिए प्यार 

शहर के बाहर 

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9 टिप्‍पणियां:

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

वाह! वाह! हमेशा की तरह बेजोड़! धन्यवाद आदरणीय!

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

ग्राम्य जीवन के चित्र अंकित करने में भाई भीकम सिंह जी सिद्धहस्त हैं।उन्हें ग्राम्य जीवन का अद्भुत चितेरा कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी।सुंदर चोका।बधाई।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

गाँव पर आपकी लेखनी सदैव कमाल करती है। सभी चोका बेहद भावपूर्ण। बधाई भीकम सिंह जी।

रेणु ने कहा…

ओह!गाँव गली के सब दृश्य मिट गए,वहीं मिट गयी अनगिन आवाजें,अनगिन मनोरम अनुभूतियाँ!! वो गाँव अब कभी ना दिख पायेंगे।अब बची हैं कुछ खंडित स्मृतियाँ! इन्हें गाने वाले कवियों की भी आखिरी पीढी है शायद 🙏😔

बेनामी ने कहा…

देहात गाँव पर लिखे शानदार चोका । भीकम सिंह जी आपको लेखनी को सलाम । बधाई ।
विभा रश्मि

भीकम सिंह ने कहा…

मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।

Anita ने कहा…

ग्राम्य जीवन की दुश्वारियों को जैसे सजीव कर दिया है आपकी क़लम ने, साधुवाद!

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुंदर सृजन।

बेनामी ने कहा…

ग्राम्य जीवन का यथार्थ चित्रण करते बहुत सुंदर चोका। आपको हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर