कृष्णा वर्मा
1
भोर की बेला 
ओस चादर ओढ़े 
भीगा प्रभात 
धूप देखके नाची 
किरणों की बारात। 
2
मेघ गरजे
धूप ने किया पर्दा 
डरी- सहमी
हवाओं का तर्जन
मिटीं परछाइयाँ।
3
बहें हवाएँ 
भले बन आँधियाँ 
करें जतन 
घिरे हुए बादल 
फिर ना छा सकेंगे। 
4
देखोगे तारे 
तो मिलेगा सुकून
किसी को तारे 
दिखाने की सोची तो 
घेरेंगी बेचैनियाँ। 
 5
लग जाए जो
रिश्तों की पंचायत 
रिस जाते हैं 
फिर नहीं निभते 
दरके हुए रिश्ते।
6
भले हो बड़ा 
पहुँचा फ़नकार 
यादों के नक़्श
नहीं मिटा सकता 
हाथ की सफ़ाई से।
7
अंतस्थल का
मर गया सौहार्द
बची हैं बातें 
नेह है नदारद 
हास न परिहास। 
8
सुर्ख़ आँखों से
गिरते आँसुओं की
ख़ामोशियों में
जी भरकर रोईं
दिल की उदासियाँ।
9
मौन हो गईं
मेरी सब शोख़ियाँ
तेरे जाने ने
जड़ दिया है ताला
मेरे गुमान पर।
10
तुझे पाने को
गुज़रे किस दौर
जाने कितनी
लड़ी हैं लड़ाइयाँ
सही कठिनाइयाँ।
11
बदला दौर 
बेमानी बातें ना
हँसी ख़ज़ाने 
रुँधे गले में फँसीं 
वो स्मृतियाँ पुरानी। 
12
बुझ न सकी 
जो दिल की लगी 
फाँस- सी चुभी
उत्ताप की आग में 
हो गए धुँआँ-धुँआँ। 
13
रुकीं गर्दिशें 
न बदला ज़माना 
सूखते पेड़
पतझड़ में पंछी 
बदल लें ठिकाना। 
14
दिली फ़रेब 
मन की दीवारों को 
करते पक्की 
देके धोखा दूजों को 
करें लोग तरक्की।
15
क्षणभंगुर 
लिखे जीवन पन्ने  
फिर क्यों डरे  
कर इश्क बसंती 
और जी- जीभरके।
16
बदलें ग्रह 
लिखें नई लक़ीरें
नया सितारा 
कहीं उकेरे सुख 
कहीं गर्म अंगारा। 
17
बड़ी उद्दाम 
होती आँख की आग 
प्रेम जलाए 
करे घरों को राख 
तीली बे सुलगाए।
18
लुटे भरोसा 
फँस जाते है शेर 
कुत्तों के जाल 
अपने हों शामिल 
जो दुश्मन की चाल।
19
दरवाज़े की 
साँकल है उदास 
तुम क्या गए 
तरस मरा पट 
थपथपाहट को। 
20
छोड़ गया वो 
खारे समंदर को 
आँखों किनारे 
घुल गया काजल 
खा-खा दर्द पछाड़ें।
21
अंतिम सीढ़ी 
हम आख़िरी पीढ़ी 
जन्मेंगे कभी 
हम जैसे अब ना
हम सा निबाहेंगे। 
22
मजबूती भी 
एक हद तक ही 
होती है अच्छी 
जो दृढ़ हुए ज़्यादा 
हो जाओगे पत्थर। 
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