डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा :सेदोका
1
मुख पे डाले
तुहिन आवरण
धरा ,कैसी
लजाए !
किरण-कर
दिनकर छूकर
यूँ घूँघट हटाए !
2
सखी देख तो
शुभ्र ,सुहानी
धूप
रूप चंद्रिका -सा
,ले
यहाँ आ गई
आँगन मेरे बैठी
लगती है अनूप ।
3
ताज़ा
खबर
सूरज
पे बरसा
कुहर
का कहर
हवा
आ गई
ले
,जल की
बौछार
कुहर
गया हार
!
-0-
कृष्णा वर्मा
1
आसमान ने
भरीं जो सर्द आहें
जमा लोक-जहान
काँपा ह्रदय
अवनि पर्वत का,
नदी- ताल निष्प्राण ।
2
लटका
पाला
सिकुड़
गए दिन
सर्दी
की आततायी
धूप
कुन्दनी
बेबस
हुई दीखे
ज्यों
कृश परछाई
।
3
सूनी
डाँड पे
भाग
रहे हैं
पाँव
क्षितिज
पार बसे
रवि
के गाँव
घनी
धुंध
में खड़ी
जमें
रश्मि के
पाँव।
4
कानन- झीलें
अँधियारे
में खोईं
कोहरे
में हवाएँ
पगडंडी
भी
डर छिपी धुँध में
कैसे घर
को जाएँ?
5
शांतमना- सी
पगडंडी
है लेटी
चुप- सी हवा
खड़ी
जाड़े
ने ताड़ा
चुप्पी छाई
हाट में
शांत
है हड़बड़ी।
6
ठगा
भोर ने
सूरज
लुका कहाँ
ओढ़ी
धुँध-
रजाई
कम्पित धरा
बावरे
गगन ने
तुषार
बरसाया।
7
निर्बाध फिरें
बर्फीली
हवाएँ ये
सीटियाँ
बजातीं-सी
झूमकरके
अपनी
आज़ादी का
देखो
जश्न मनातीं।
-0-