रामेश्वर काम्बोज
‘हिमांशु’
जीवन जिया
खुद को ही हमने
दण्डित किया
लगता जैसे कोई
ग़ुनाह किया ।
रस्मों के जाल फँसे
बेड़ियों बँधे
अपनों के वेष में
व्याल ही मिले
सींची जो प्यार से वो
विषबेल थी
कंटक मग बिछे
पग में चुभे
लहूलुहान हुए
चलते रहे
थके, ढलते रहे
जान पाए ये-
हमें जो मीत मिले,
छलते रहे
छलनी हुआ मन
साँझ हो गई
जीवन की मिठास
कहीं खो गई ।
अनजाना बटोही
बाट में मिला
मन-मरुभूमि में
ज्यों फूल खिला
तप्त तन –मन को
उसने छुआ
लगता जैसे कोई
जादू-सा हुआ
सीने से लगाकर
ताप था हरा
दर्द सारे पी गया
बुझता दीप
नेह मिला जी गया।
अब तो बची
मीत चाह इतनी-
जब जाना हो
अगले सफ़र में
तेरा हाथ हो
सिर्फ़ मेरे हाथ में
माथा तु्म्हारा
चूमकर अधर
बन्द हों जाएँ,
मेरी आँखों में मीत
तेरा हो रूप
दूर लोक जाएँगे
तुम्हें हम पाएँगे ।
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12 टिप्पणियां:
आहत ह्रदय की व्यथा का यथार्थ चित्रण करता बहुत सुन्दर चोका......हार्दिक बधाई हिमांशु जी !
मन-मरुभूमि में
ज्यों फूल खिला
तप्त तन –मन को
उसने छुआ
लगता जैसे कोई
जादू-सा हुआ
जीवन के दग्ध दर्द को इन पंक्तियों ने प्रेम से जोड़ दिया .
सुंदर , सशक्त रचना .
ahat man ki abhivyakti bahut hi sunder hai bhai ji apako choka ke madhyam se samaj ki gati ko abhivyakt karne hetu badhai.
pushpa mehra.
जीवन यात्रा का मर्मस्पर्शी वर्णन...
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति...
गर्म रेत पर शीतल बूँदें भी... सादर बधाई !!
man-marubhumi mein, jyon phool khila......., lagata jai koi jadoo-sa hua.bhai ji ma ki phulon si god se utar jab manushya jeevan ki kankariili rahon mein choten khata apane ko ashay samajhane lage aise mein yadi phir koi phool sa par majboot hanth mil jaye t o jeevan dhanya ho jata hai bhav ko darsh ati rachana. samayochit hai . badhai. pushpa mehra.
man-marubhumi mein ,jyon fuul khila , tapt tan- man ko,usane chua...... bahut sunder abhivyakti.bhai ji badhai.
pushpa mehra.
रस्मों के जाल फँसे
बेड़ियों बँधे
अपनों के वेष में
व्याल ही मिले
सींची जो प्यार से वो
विषबेल थी
कंटक मग बिछे
पग में चुभे
लहूलुहान हुए........आह भी और वाह भी ........बहुत सुन्दर चोका ...बधाई ...सादर नमन आपको |
कितनी सच्चाई है इन पंक्तियों में...दिल को छू गयी जैसे...|
हार्दिक बधाई और आभार...|
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी, बहुत सुन्दर चोका, हार्दिक बधाई !
Hrdyisaparshi rachna bahut-bahut badhai....
अनजाना बटोही
बाट में मिला
मन-मरुभूमि में
ज्यों फूल खिला
अत्यंत सुन्दर पंक्तियाँ. बधाई।
सींची जो प्यार से, विष बेल थी.... ह्रदय स्पर्शी रचना... बधाई
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