डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1
कवि ऐसे मत डोलो
अर्थ अनर्थ करे
तोलो फिर कुछ बोलो ।
2
क्या बात लगी करने
बादल से धरती
फिर पीर लगी झरने ।
3
देंगें तो क्या देंगें
ग़म के शोलों को
वो सिर्फ हवा देंगें ।
4
अब यूँ न विचर तितली
धूप यहाँ ...दिन में !
कल डर-डर कर निकली ।
5
ऐसे न किरन हारी
जीत गई तम से
सूरज था सरकारी ।
6
उफ़ !आज हुआ बेकल
सुन-सुन के सागर
ये नदिया की कल-कल ।
-0-
8 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर माहिया ज्योत्स्ना जी !
हार्दिक बधाई !!!
~सादर
अनिता ललित
बहुत सुन्दर माहिया ज्योत्स्ना जी !
हार्दिक बधाई !!!
~सादर
अनिता ललित
यह स्नेह और सम्मान देने के लिए सम्पादक द्वय के प्रति बहुत बहुत आभार !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ३ /१२ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है
बड़े सुन्दर माहिया १,२ और ३ तो बहुत बढ़िया !
ज्योत्स्ना जी बहुत-बहुत बधाई !
इस स्नेह के लिए हृदय से आभारी हूँ ...अनिता जी ,Rajesh Kumari ji evam Krishna ji ...bahut dhanyawaad
saadar
jyotsna sharma
प्यारे हाइकु। यह विशेष-
ऐसे न किरन हारी
जीत गई तम से
सूरज था सरकारी ।
बहुत आभार ...ज्योत्स्ना प्रदीप जी |
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
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