सोमवार, 2 दिसंबर 2013

तोलो फिर कुछ बोलो



डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1
कवि ऐसे मत डोलो
अर्थ अनर्थ करे
तोलो फिर कुछ बोलो
2
क्या बात लगी करने
बादल से धरती
फिर पीर लगी झरने
3
देंगें तो क्या देंगें
ग़म के शोलों को
वो सिर्फ हवा देंगें
4
अब यूँ न विचर तितली
धूप यहाँ ...दिन में !
कल डर-डर कर निकली
5
ऐसे न किरन हारी
जीत गई तम से
सूरज था सरकारी
6
उफ़ !आज हुआ बेकल
सुन-सुन के सागर
ये नदिया की कल-कल
-0-

8 टिप्‍पणियां:

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत सुन्दर माहिया ज्योत्स्ना जी !
हार्दिक बधाई !!!

~सादर
अनिता ललित

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत सुन्दर माहिया ज्योत्स्ना जी !
हार्दिक बधाई !!!

~सादर
अनिता ललित

ज्योति-कलश ने कहा…

यह स्नेह और सम्मान देने के लिए सम्पादक द्वय के प्रति बहुत बहुत आभार !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ३ /१२ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है

Krishna ने कहा…

बड़े सुन्दर माहिया १,२ और ३ तो बहुत बढ़िया !
ज्योत्स्ना जी बहुत-बहुत बधाई !

ज्योति-कलश ने कहा…

इस स्नेह के लिए हृदय से आभारी हूँ ...अनिता जी ,Rajesh Kumari ji evam Krishna ji ...bahut dhanyawaad

saadar
jyotsna sharma

Jyotsana pradeep ने कहा…

प्यारे हाइकु। यह विशेष-

ऐसे न किरन हारी
जीत गई तम से
सूरज था सरकारी ।

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत आभार ...ज्योत्स्ना प्रदीप जी |

सादर
ज्योत्स्ना शर्मा