कुमुद
रामानन्द बंसल
1
मधुर   स्वर,
धुन  है  पहचानी
हे  विहंगिनी!
तुझ-सा 
ही आनन्द
पाएगा  मेरा  मन  ।
2
चिनार-वृक्ष,
हिमरंजित  वन,
धरा-वक्ष  पे
घूमते  बादलों  की
मीठी-सी  है  छुअन  ।
3
शरद्  ॠतु  में
झड़ा  हरेक  पात,
सूनी  शाखों  की
दर्द  भरी  है  बात
सुनती  दिन-रात 
।
4
भीनी-सी  गन्ध
पीली-पीली  सरसों
मंजरी - गुच्छ,
झरते  बेला 
पुष्प
सूँघे  मन  बरसो  ।
5
मेघ-तड़ित
रूठते-झगड़ते,
आँखमिचौली
सूर्य,  मेघ,  पवन,
देखी  इन्हीं  नयन  ।
6
सौ –सौ  ठौर  हैं
विचरण  के  लिए,
नभ  छू  कर
लौट  आता  है  पिक,
तृण-नीड़  अपने  ।
7
कृश  है  काया,
मुट्ठी  भर  है  मिट्टी,
छोटे - से  पंख,
उड़ान  गजब  की,
गगन  को  हराती  ।
8
शाख  पे  बैठे
बतियाएँ  परिन्दे,
गाते  सुमन,
पग  घुँघुरू  बाँध
नाचता  उपवन  ।
9
मधु ॠतु  है
बौराये  आम्र-वृक्ष,
पलाश  डालें
पुष्पित  हुईं,  भौरे
गाएँ  गान  वासन्ती  ।
10
इस  ख्याल  ने
चिड़िया  के  परो  में
ऊर्जा  भर  दी,
बाट  जोहते  होंगे
बच्चे  चुग्गे  के  लिए  ।
11
हवा  का  झोंका,
पंछी  गुनगुनाएँ,
हज़ार  गीत।
उड़ी  तितली  संग
तोड़  कर  बन्धन  ।
-0-
( सद्य
प्रकाशित संग्रह ‘हे विहंगिनी' से )


 
 
9 टिप्पणियां:
Bahut Khub ...bahut -bahut abhar ...
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (24-01-2015) को "लगता है बसन्त आया है" (चर्चा-1868) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चिनार-वृक्ष,
हिमरंजित वन,
धरा-वक्ष पे
घूमते बादलों की
मीठी-सी है छुअन ।
komal bhav sunder likha hai aapne bahut bahut badhai
rachana
बहुत मनमोहक भावचित्र... सुन्दर ताँका के लिए बधाई.
प्रकृति, कल्पना और भाषा का सुन्दर संयोजन | बहुत ही कोमल रचनाएँ | बधाई आपको एवं आभार सम्पादक द्वय |
शशि पाधा
is khyal ne, pankhon mein udan bhar di......bahut sunder panktiyan hain.kumud ji badhai.
pushpa mehra.
sunder shabd chyan,bhavy bhaav chitr v meethi si kalpnaao se sajee badi manmohak rachna.....badhai ho kumud jee.
ati sunder bhavyabhivyakti kumud ji. Bahut bahut badhai.
बेहतरीन रचनाएँ...बधाई...|
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