रविवार, 7 मार्च 2021

958-कण्ठ है प्यासा

 पिछले दस वर्षो के 4 लोकप्रिय  अंकों में से एक -कण्ठ है प्यासा आज प्रस्तुत है, जो हरियाणा प्रदीप में भी प्रकाशित है।



18 टिप्‍पणियां:

नंदा पाण्डेय ने कहा…

बहुत बढ़िया

Anita Manda ने कहा…

सार्थक रचना। बधाई।

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

पर्यावरण के महत्व को रेखांकित करती महत्वपूर्ण रचना।कविता जी को बधाई

Shashi Padha ने कहा…

वृक्ष लताएँअब खुद ही खोजें अपनी छाँव — कितनी पीड़ा है इन पंक्तियों में । दिल भर आया पूरी रचना पढ़ कर । बधाई कविता जी को ।
शशि पाधा

Satya sharma ने कहा…

बहुत उम्दा

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

अत्यधिक मार्मिक पंक्तियाँ ... कविता जी को बधाई।

Pushpa mehra ने कहा…


स्वार्थ वश प्रकृति से खिलवाड़ और वृक्षों के ह्रास से उत्पन्न वह पीड़ा जिसे मनुष्य ,पशु -पक्षी या यूँ कहें सारा ही चर -अचर झेल रहा है इस तथ्य को दर्शाती सुन्दर समवेदना जन्य कविता के लिए कविता जी को बधाई |

पुष्पा मेहरा

Reet Mukatsari ने कहा…

भावपूर्ण चित्रण,,

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

हृदयस्पर्शी.... कविता जी को बधाई!

Jyotsana pradeep ने कहा…

मार्मिक सृजन,प्रिय कविता जी को हार्दिक बधाई!

Sudershan Ratnakar ने कहा…

मार्मिक ,सार्थक सृजन। हार्दिक बधाई कविता जी।

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

कथित विकास से उपजी विनाश की व्यथा का मार्मिक चित्रण। अपने आसपास को इसी तरह व्यक्त किया जाकर ही जागृति लायी जा सकती है।
कविता जी को बधाई।

Krishna ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना...हार्दिक बधाई।

dr.surangma yadav ने कहा…

बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई।

नीलाम्बरा.com ने कहा…

हार्दिक आभार आप सभी का।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर

Jyoti khare ने कहा…

बहुत ही सुंदर शब्दचित्र
अच्छी कविता
बधाई

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आभार

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

पर्यावरण को नष्ट कर के हम जो ग़लती कर रहे , उसके दुष्परिणाम हमको ही झेलने होंगे |
बहुत सार्थक और सुन्दर रचना है ये, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें |