गुरुवार, 21 जुलाई 2022

1052

 

भीकम सिंह 

 

नदी  - 6

 

बाढ़ ओढ़के 

खींच लेती है नदी 

तट की बाहें 

गुजरे समय की,

याद करके 

कुछ भूली - सी राहें 

छोड़के आई 

सावन में बहाके 

तोड़ी गई वो

तमाम वर्जनाएँ 

नदी को याद आएँ ।

 

नदी -7

 

निजी मानके 

तटों ने बीचों-बीच 

बहती नदी 

गहरे कोहरे में 

कभी-कभी यूँ 

सोचकर हैरान 

बड़बड़ाती 

शायद हो हूबहू 

पहले जैसा

ऋषि का कोई रास

पैदा हो वेदव्यास ।

-0-

12 टिप्‍पणियां:

Gurjar Kapil Bainsla ने कहा…

बहुत ही उत्कृष्ट चोका है। हार्दिक शुभकामनाएँ सर।

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुंदर कह देना काफी नहीं।

आपकी लेखनी में सचमुुच जादू है।
आपको पढ़ते समय नदी मेरे सामने थी और मैं लहरों की हलचल को सुन रही थी।
अत्यंत अद्भुत सृजन।
यूहीं शब्दों की जादूगरी से साहित्य को समृद्ध करते रहिए।

हार्दिक बधाई, अनंत शुभकामनाएँ।

Sonneteer Anima Das ने कहा…

वाह्ह्ह... अनन्य सृजन 🌹🙏🙏बधाई सर

डॉ. पूर्वा शर्मा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सृजन
हार्दिक बधाई आदरणीय

dr.surangma yadav ने कहा…

बेहद खूबसूरत चित्रण। हार्दिक बधाई।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

आदरणीय बहुत आनन्द आया पढ़कर! आपका धन्यवाद!

Vibha Rashmi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
भीकम सिंह ने कहा…

खूबसूरत और मन को प्रसन्न करने वाली टिप्पणियाँ करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार, मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद ।

Krishna ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन...हार्दिक बधाई।

Vibha Rashmi ने कहा…

भीकम सिंह जी का नदी पर बहुत खूबसूरत टोका ।उत्तम सृजन के लिये बधाई लें ।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

एक ही विषय पर अलग-अलग चोका रचना, वाह !

बेनामी ने कहा…

भीकम सिंह के विविध रंग के , नदी पर चोका सृजन , भावमय व सुन्दर हैं । हार्दिक बधाई ।
विभा रश्मि