गुरुवार, 31 अगस्त 2023

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  भीकम सिंह 

गाँव  - 96

 

गाँवों में अभी 

तपती हवाएँ हैं 

लोगों से घिरे 

जलते अलाव भी

खेत-सूखे हैं

औ- जल भराव भी

मिट्टी सोंधी है

थोड़ी-सी खराब भी

बीड़ी फूँकते 

आसमान ताकते 

हैं अभी स्वभाव भी 

 

गाँव  - 97

 

छोटा-सा खेत 

हिस्से-हिस्से हो गया 

बँटवारा ज्यों 

आँगन में दीवार 

ऊँची बो गया 

हारा हुआ मुखिया 

रिश्तों में कैद 

होकर रह गया 

बड़ा मलाल 

बूढ़ी माता को हुआ 

कैसे बाँटे वो दुआ 

 

गाँव  - 98

 

घरों से दूर

जब पहुँचा गाँव 

धान के पास

खुदी- सी मिली नींव 

मेड़ के पास

कहीं झड़े- से दाने

धोती-गमछा 

कहीं जूती - चप्पल 

कहीं विश्वास 

टूटा मिला रेत  में 

सब उसी खेत  में  

 

गाँव  - 99

 

बढ रहे हैं 

जमीन के भीतर

नाइट्रोजन 

सल्फर-औ-कार्बन 

खेत के खेत 

जमुहाई ले रहे 

गाँव चुप थे 

बहुत दिनों बाद 

ब्योरा ले रहे 

सारे जमा खर्च का 

सरकारी सर्च का 

 

गाँव  - 100

 

गाँवों को मिले 

तिकड़मी दबंग 

किसान दंग

प्यासे खेत पी रहे 

खाद की भंग 

सभी बंजर जैसे 

खड़े हैं दंग

कृषि हो चुकी बूढ़ी 

बची ना यंग 

उड़े शस्यों के रंग 

खलिहान के संग 

-0-

चाँद

भीकम सिंह 

1

मेघों के सारे 

दरवाजे खोलके

निकले तारे 

चकोरों ने भी खोले 

झोपड़ियों के द्वारे   

2

 चंदा का नाम 

जुड़ा ज्यों चकोर से

चाँदनी चढ़ी

बड़े जोर- शोर से 

धरा देखे गौर से ।

3

कोह की ओट

नदी में डूबा चाँद 

सोचे चकोर

कैसे पैगाम मेरा 

पहुँचे उस ओर।

-0-

7 टिप्‍पणियां:

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

ग्रामीण परिवेश को रेखांकित करती हुई बेहतरीन रचनाएँ-हार्दिक बधाई।

dr.surangma yadav ने कहा…

ग्राम्य जीवन पर केन्द्रित अति सुन्दर रचनाएँ।बधाई सर।

बेनामी ने कहा…

कवि ने ग्रामीण जीवन की हूबहू व सुन्दर झाँकी खींची है । हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी को ।
विभा रश्मि

बेनामी ने कहा…

ग्राम्य जीवन का बहुत सुंदर चित्रण। पूरे सौ चोका होने की हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

बेनामी ने कहा…

सुंदर ताँका। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

भीकम सिंह ने कहा…

मेरे ताँका, चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर ताँका...हार्दिक बधाई।