गुरुवार, 28 सितंबर 2023

1139-सामयिक

 

भीकम सिंह 

 


सामयिक  - 1

 

हाथों में थामे 

फावड़ा-औ-कुदाल

ये रोजीदारी 

कर रही बेहाल 

इसके लिए 

कौन है जिम्मेदार 

पसर जाता 

हृदय में नित्य ही 

दुःख अपार 

पलट के देखता 

ये छोटा रोजीदार 

 

सामयिक  - 2

 

होंठों पर है

बनावटी मुस्कान 

गालियाँ भरी 

नेताओं की जबान 

खुद-ब-खुद 

लग जाती है आग 

जले मकान 

बढ़ी हुई दुकान 

कुछ यादें है 

थक- हारके आती 

थकाके हार जाती 

 

सामयिक - 3

 

खेतों पे कब्ज़ा 

नगरों का हो गया 

चलता रहा 

किसानों का धरना 

प्रतिकार के 

शब्दों की होती रही 

ज्यों आवाजाही 

खंगाल रही उन्हें 

अब पुलिस 

कई महीनों बाद 

हाथ पे धरे हाथ ।

 

 

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10 टिप्‍पणियां:

Rashmi Vibha Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीय भीकम सिंह जी को

Seema Singh ने कहा…

बहुत सुंदर ,मुझे चोका का शास्त्रीय ज्ञान तो नहीं है,परंतु भाव और शब्दावली बहुत शानदार है,मन प्रसन्न हो गया पढ़कर।आ०भीकम सिंह जी को हार्दिक बधाई💐

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर चोका...हार्दिक बधाई।

Sushila Sheel Rana ने कहा…

बहुत सुंदर चोका। बधाई

बेनामी ने कहा…

सुन्दर चोका भीकम सिंह जी बधाई.
रचना

बेनामी ने कहा…

भीकम जी आपके लेखन को नमन। बहुत सुंदर चोका की रचना की है। बधाई। सविता अग्रवाल
“सवि”

भीकम सिंह ने कहा…

मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत बढ़िया चोका!

~सादर
अनिता ललित

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सभी चोका अर्थपूर्ण। बधाई भीकम सिंह जी।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सुन्दर चोका के लिए बहुत बधाई