शनिवार, 6 अप्रैल 2024

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 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

ब्रज अनुवाद- रश्मि विभा त्रिपाठी


1

रोया नहीं मैं

कि पथ में शूल हैं

नहीं झिझका

कि नभ में धूल है

या है कोई चुभन।

 

रोयौ नाहिं हौं

कि पंथ मैं कंट ऐं

नाहिं सँहपौ

कि नभ मैं धूरि ऐ

कोऊ कुचन की धौं।

2

उसी ताप से-

पिंघल, मैं जी लूँगा

खारे ही सही

भर ओक पी लूँगा

करके आचमन।

 

वाही ताप सौं

टिघिरि, हौं जी लैंहौं

खारे ई भलैं

भरि ओक पी लैहौं

करिकैं आचमन।

3

मेरी बहना

तू गगन का चन्दा

अँधेरा हरे

मन उजाला भरे

हम साथ तुम्हारे।

 

मोरी बहना

तूँ अक्कास कौ चंदा

अंध्यारौ हरै

हिय उज्यारौ भरै

हम संग तिहारे।

4

आँसू की बोली

कब कुछ कहती

बिन बोले ही

ताप से पिघलती

मोम बन ढलती।

 

अँसुआ बानी

कबैं कछू आखति

बिन बोलैं ई

ताप तैं टिघरति

मौम बनि ढरति।

5

मौन रहना

है आँखों का गहना

मुसकाकर

सारे दर्द सहना

कुछ भी न कहना।

 

मौंगौ रहिबौ

आँखिन कौ आभर्न

मुसकाइकैं

सिग पीर सहिबौ

कछुऔ न कहिबौ।

6

मेरे दर्द में

तुम्हारे आँसू बहे

ये क्या हो गया-

ज्यों ही तुमने छुआ

दर्द गुम हो गया।

 

पीर मैं मोरी

तिहारे आँसु बहे

जे कहा भयौ-

जौं ई तुमनैं छुयौ

पीर हिराइ गई।

7

धूप कोसते

बन्धु क्यों है चलना

सच होता है

ये उगना, ढलना

सबको गले लगा।

 

घाम कोसत

भैया काहे चलिबौ

साँची होवत

जे उवनौ, ढरिबौ

सिगैं गरैं लगाउ।

8

चिड़िया पूछे-

कहाँ है दाना- पानी

बड़ी हैरानी

फिर मैं कैसे गाऊँ?

आके तुम्हें जगाऊँ।

 

चिरैया पूछै-

कितकौं दानौ- पानी

भारौ अचंभौ

फिरि हौं कत गाऔं?

आइ तुम्हैं जगाऔं।

9

सुबकी लेना

शीतल बौछारों में

चैन मिलेगा

साथी नहीं जानेंगे

गम कितना भारी।

 

सुबकी लियो

सीरी बौछारनि मैं

कल परैगौ

संगी न जानि पैहैं

दूखु कियतौ भारौ।

10

बिखरी रेत

चिड़िया है नहाए

मेघ भी देखे

चिड़िया यूँ माँगे है

सबके लिए पानी।

 

बगरी रेत

चिरैया अन्हावति

मेघउ देखै

चिरैया यौं याचति

सिगके काजैं पानी।

11

सन्देसा लाया

जीभर लहराया

रुका पवन

छुपा है आँचल में

छू लेने को पल में।

 

सनेसौ लायौ

जीभरि लहरायौ

रुक्यौ पवन

लुप्यौ ऐ अंचरु मैं

परसिबे छिन मैं।

12

रह- रहके

गीतों में दर्द घुला

आया छनके

सुधियों को छूकर

जादू- मंत्र बनके।

 

रहि- रहिकैं

गीतनि पीर घुरी

आयौ छनिकैं

सुधियनि परसि

जादू मंतर बनि।

13

किसे पता था

ये दिन भी आएँगे

अपने सभी

पाषाण हो जाएँगे

चोट पहुँचाएँगे।

 

कौनै ओ पतौ

जे दिवसउ ऐहैं

अपुने सिग

पाथर के ह्वै जैहैं

चोट पहुँचावैंगे।

14

ओ मेरे मन!

तू सभी से प्यार की

आशा न रख

पाहन पर दूब

कभी जमती नहीं।

 

ओ मोरे जिय

तूँ सिबतैं हेत की

आस न रक्खि

पाहननि पै दूबा

कभऊँ जमै नाहिं।

 15

ये सुख साथी

कब रहा किसी का

ये हरजाई

थोड़ा अपना दु:ख

तुम मुझको दे दो।

 

जे सुख संगी

कबैं रह्यौ काहू कौ

जाय छलिया

दूखु आपुनौ थोरौ

तुम मोहि दै देउ।

16

रेत- सी झरी

भरी- पूरी ज़िन्दगी

कुछ न बचा

था सुनसान वन

कि पार था चमन।

 

रेत सौ झर्यौ

भरौ- पूरौ जीवनु

कछू न बच्यौ

हुतौ नीजन बन

पार हुतो चमन।

 17

घेरते रहे

बनके रोड़े कई

हारने लगे

जब अकेले पड़े

तुम साथ थे खड़े।

 

घेरत रए

रोरा निरे बनिकैं

हारन लगे

इकौसे परे जबैं

संग ठाड़े हुते तैं।

18

यह जीवन

यों स्वर्णिम हो गया

दर्द खो गया

नील नभ में कहीं

जो स्पर्श तेरा मिला।

 

याहि जीवनु

असि सुन्हैरौ ह्वै ग्यौ

पीर हिरानी

लीले नभ मैं कहूँ

परस तोरौ मिल्यौ।

19

साथी है कौन

अम्बर भी है मौन

एकाकी पथ

दूर तक सन्नाटा

किसने दुख बाँटा।

 

को हतु संगी

अम्बरउ अबोल

पंथ इकंगी

दूरि लौं कौ सन्नाटौ

कौन नैं दूखु बाँटौ।

20

घेरती रही

अकेले को तो भीड़

आए भीड़ में

और हुए अकेले

कोई तो साथ ले ले।

 

घेरति रई

इकौसे कौं तौ भीर

आने भीर मैं

और भऐ इकौसे

कोऊ तौ संग लै लै।

21

जीवन मिला

साँसों का सौरभ भी

तन में घुला

अधरों से जो पिए

नयनों के चषक।

 

जीवनु मिल्यौ

साँसनि कौ अरंगौ

तन मैं घुर् यौ

औंठनि तैं जु पिए

नैननि के चषक।

22

तेरी सिसकी

सन्नाटे को चीरती

बर्छी- सी चुभी

कुछ तो ऐसा करूँ

तेरे दु:ख मैं वरूँ।

 

तोरी सिसकी

नीरवए चीरति

बर्छी सी कुची

कछू तौ ऐसौ करौं

तोरे दूखु हौं वरौं।

23

अधरों पर

तेरा नाम छलके

सुधा पान- सा

आँखों में तेरी ज्योति

दीपित हो भोर- सी।

 

अधरनि पै

तोरौ नाँउ छलकै

सुधा पान सौ

नैननि मैं तो जोति

दीपित सौकारे सी।

24

कुछ न लिया

हमने दुनिया से

तुमसे मिला

दो घूँट अमृत था

उसी को पी मैं जिया।

 

कछू न लयौ

हमनैं संसार सौं

तुमतैं मिल्यौ

द्वै घूँट अमी हुतौ

वाही कौं पी हौं जियौ।

25

हे प्रभु मेरे

कुछ ऐसा कर दे

दुख मीत के

सब चुनकर तू

मेरी झोली भर दे।

 

हे प्रभो मोरे

कछू ऐसौ करि दै

दूखु मीता के

सिगरे चुनिकै तूँ

मोरी ओली भरि दै।

26

मोती- सा मन

बरसों था सँभाला

पीस ही डाला

कुछ निपट अंधे

अकर्ण साथ बँधे।

 

मुक्ता सौ हिय

बरसनि संभार् यौ

पीसि ई डार् यौ

कछू बनाँय अंधे

अकर्न संग बँधे।

27

छू लेना मुझे-

मलय पवन ज्यों

चुपके आए

साँसों में आ समाए

अंक से लग जाए।

 

छू लियो मोहे

मलय पवन जौं

साधि कैं आवै

साँसनि मैं समावै

अंक सौं लगि जावै।

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4 टिप्‍पणियां:

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर ताँका और उसका ब्रज अनुवाद। आप दोनों को बधाई।

Krishna ने कहा…

अनुपम ताँका का अति सुंदर अनुवाद...आदरणीय काम्बोज जी एवं रश्मि विभा जी को हार्दिक बधाई।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

वाह! सुंदर ताँका का अति सुंदर अनुवाद। आदरणीय काम्बोज भाई साहब और रश्मि जी को बधाई!

बेनामी ने कहा…

जितने सुंदर ताँका हैं, उतना ही मधुर अनुवाद।आप दोनों को हार्दिक बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर