भावना कुँअर
बिछोह -घड़ी
सँजोती जाऊँ आँसू
मन भीतर
भरी मन -गागर।
प्रतीक्षारत
निहारती हूँ पथ
सँभालूँ कैसे
उमड़ता सागर।
मिलन -घड़ी
रोके न रुक पाए
कँपकपाती
सुबकियों की छड़ी।
छलक उठा
छल-छल करके
बिन बोले ही
सदियों से जमा वो
अँखियों का सागर।
5 टिप्पणियां:
बहुत-बहुत भावपूर्ण चोका है ...बधाई ..
डा.रमा द्विवेदी
behad bhaavpurn choka. milan aur vichhoh man ki is donon awastha ko bahut sundar shabdon mein abhivyakt kiya hai, badhai.
sadiyon se jaba .............
kitna sunder uf man ko chhu gaya
badhai
rachana
bahut sunder bahivyakti hai. badhai..
saadar,
amita
सुन्दर अभिव्यक्ति...
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