रचना श्रीवास्तव
1
भावों की वर्षा
बंजर जज़्बात में
सूख जाती है
उगती नागफनी
हिना लगे हाथों में
2
लोभ -अग्नि में
आहुति दी उसकी
कब तक दे
स्त्री होने का 'कर '
कभी तो अन्त कर
3
प्रभु बताओ
क्या स्त्री होना ज़ुर्म है ?
न जन्म देना
अग्निपथ जाने को
वेदना सहने को
4
भावों की वर्षा
बंजर जज़्बात में
सूख जाती है
उगती नागफनी
हिना लगे हाथों में
2
लोभ -अग्नि में
आहुति दी उसकी
कब तक दे
स्त्री होने का 'कर '
कभी तो अन्त कर
3
प्रभु बताओ
क्या स्त्री होना ज़ुर्म है ?
न जन्म देना
अग्निपथ जाने को
वेदना सहने को
4
शब्दों का लावा
आत्मा पर फफोले
घायल मन
पर उफ़ न करे
तो महान है नारी !
आत्मा पर फफोले
घायल मन
पर उफ़ न करे
तो महान है नारी !
5
शब्दों का शोर
देखता नहीं कोई
रिश्वत चश्मा
चढ़ा है आँखों पर
उतारे ,तब दिखे ।
6
देखता नहीं कोई
रिश्वत चश्मा
चढ़ा है आँखों पर
उतारे ,तब दिखे ।
6
भीगे थे शब्द
ठिठुरते हुए वो
किताबों छुपे
वेदना समझी न
उन भोले शब्दों की
ठिठुरते हुए वो
किताबों छुपे
वेदना समझी न
उन भोले शब्दों की
7
सहती रही
बाँझ होने का ताना
बाँझ होने का ताना
धरा -सुन्दरी
हुई ईश्वर -कृपा
तो अंकुरित हुई
8
हुई ईश्वर -कृपा
तो अंकुरित हुई
8
भटके शब्द
मिला किनारा उन्हें
आपने थामा
मथा भावनाओं को
मिला किनारा उन्हें
आपने थामा
मथा भावनाओं को
काव्य के मोती मिले
9
गली में आई
उजाले की किरण
शब्दों को धोया
बही काव्य की धारा ,
कविता महक उठी
गली में आई
उजाले की किरण
शब्दों को धोया
बही काव्य की धारा ,
कविता महक उठी
10
मन की पीड़ा अँधेरे में सिसकी
सुनाई न दी
दूसरों की पीड़ा से
दु:खी होता है कौन
-0-
3 टिप्पणियां:
शब्दों का लावा
आत्मा पर फफोले
घायल मन
पर उफ़ न करे
तो महान है नारी !
बहुत सुन्दरता से शब्दों में बाँधा है...बधाई|
मन की पीड़ा
अँधेरे में सिसकी
सुनाई न दी
दूसरों की पीड़ा से
दु:खी होता है कौन
khud kee peedaa hee peedaa jo lagtee
nice
भीगे थे शब्द
ठिठुरते हुए वो
किताबों छुपे
वेदना समझी न
उन भोले शब्दों की ..
Bahut khubsurat kaha aapne bahut2 badhai..
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