शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

भावों की वर्षा


रचना श्रीवास्तव
1
भावों की वर्षा
बंजर जज़्बात में
सूख जाती है
उगती  नागफनी
हिना लगे हाथों में
2
लोभ -अग्नि में
आहुति दी उसकी
कब तक दे
स्त्री  होने का 'कर '
कभी तो अन्त कर
3
प्रभु बताओ
क्या स्त्री  होना ज़ुर्म है ?
  जन्म देना
अग्निपथ जाने को
वेदना  सहने को
4
शब्दों का लावा
आत्मा पर फफोले
घायल मन
पर उफ़ न करे
तो महान है नारी !
5
शब्दों का शोर
देखता नहीं कोई
रिश्वत चश्मा
चढ़ा है आँखों पर
उतारे ,तब दिखे

6
भीगे थे शब्द
ठिठुरते हुए  वो
किताबों छुपे
वेदना समझी न
उन भोले शब्दों की 
7
सहती रही
बाँझ होने का ताना
धरा -सुन्दरी
हुई ईश्वर -कृपा
तो अंकुरित हुई
8
भटके शब्द 
मिला किनारा उन्हें
 
आपने
थामा
मथा भावनाओं को
 
काव्य  के मोती मिले
9
गली  में आई
 
उजाले  की किरण
 
शब्दों  को धोया
 
बही काव्य की धारा ,
कविता महक उठी
10
मन की पीड़ा
अँधेरे में सिसकी
सुनाई न दी
दूसरों की पीड़ा से
दु:खी  होता है कौन
 -0-

3 टिप्‍पणियां:

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

शब्दों का लावा
आत्मा पर फफोले
घायल मन
पर उफ़ न करे
तो महान है नारी !

बहुत सुन्दरता से शब्दों में बाँधा है...बधाई|

Nirantar ने कहा…

मन की पीड़ा
अँधेरे में सिसकी
सुनाई न दी
दूसरों की पीड़ा से
दु:खी होता है कौन

khud kee peedaa hee peedaa jo lagtee
nice

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

भीगे थे शब्द
ठिठुरते हुए वो
किताबों छुपे
वेदना समझी न
उन भोले शब्दों की ..
Bahut khubsurat kaha aapne bahut2 badhai..