डॉ0 सरस्वती माथुर
1
2
सुधि- सपने
नींद नदी में बहे
बिना रुके ह़ी
अविराम बहते
सागर जा ठहरे ।
सुधि- सपने
नींद नदी में बहे
बिना रुके ह़ी
अविराम बहते
सागर जा ठहरे ।
3
सुबह सूर्य
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वो रुका
सागर लाल हुआ ।
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वो रुका
सागर लाल हुआ ।
4
5
घुँघरू बजा
फागुनी हवाएँ भी
सुर मिलाके
चिड़िया संग डोली
सुर मिलाके
चिड़िया संग डोली
हरी -भरी धरा पे ।
-0-
9 टिप्पणियां:
सुबह सूर्य
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वो रुका
सागर लाल हुआ
नारी की आभा
सृष्टि केसूर्य- सी है
उजास लाती
चिड़िया-सी उड़ती
पंख फैला नभ में।
बहुत सुंदर तांका हैं .हार्दिक बधाई.
सादर,
अमिता कौंडल
सुबह सूर्य
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वो रुका
सागर लाल हुआ ।
बहुत ही सुन्दर तॉंका प्रकृति की खूबसूरती ओर खूब बनाता ।
डा सरस्वती जी को बधाई।
नारी की आभा
सृष्टि केसूर्य- सी है
उजास लाती
चिड़िया-सी उड़ती
पंख फैला नभ में।
bahut sunder...sabhi taanka achche hain...badhai!
मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि हिन्दी हाइकु की तरह त्रिवेणी भी नई और सशक्त प्रतिभाओं को सामने ला रहा है । डॉ सरस्वती माथुर के रस से पगे ताँका पहली बार पढ़े , लेकिन ऐसा लगा कि किसी सिद्धहस्त रचनाकार का सर्जन है; नए का नहीं । प्रत्येक ताँका अपने मधुर सुर में मुखरित है हार्दिक बधाई , साथ ही सम्पादक द्वय को भी ।
सुबह सूर्य
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वो रुका
सागर लाल हुआ ।
Bahut sundar prakrti varanan kiya hai is taankaa men...bahut2 badhai...
नारी की आभा
सृष्टि के सूर्य- सी है
उजास लाती
चिड़िया-सी उड़ती
पंख फैला नभ में ।
nari ki abha aesi hi hai aapki soch ati uttam hai
badhai
rachana
बहुत सुन्दर और मोहक भाव...
सुबह सूर्य
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वो रुका
सागर लाल हुआ ।
शुभकामनाएँ.
तहे दिल से आभार !
तहे दिल से आभार !
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