डॉoसतीशराज पुष्करणा
1.
पुरानी चिट्ठी
हाथ में जो आ गयी !
पुरानी बातें
जो कहीं खो गयी थीं
फिर पास आ गयीं
2-
जो भी लिखना
हर बात को सच.
सच लिखना !
अंधेरे को उजाला
कभी नहीं लिखना
3
हर कदम
रुसवाइयाँ मिलीं !
लाँघ जाने को
हरेक सफ़र में
चौड़ी खाइयाँ मिलीं
4
भूखे भी रहे
स्वाभिमान बचाया !
कुछ न माँगा
जो कुछ भी पाया है
श्रम से ही पाया है
5
जग को देखो
दुख मिट जाएगा !
सब हैं दुखी
एक तुम ही नहीं !
रोने से क्या फायदा
6
बाती के बिना
दीया रहा उदास !
और वो बाती
करवटें बदल
सिसकी सारी रात
7
पता न चला
रात कब गुज़री !
आँख जो खुली
सामने सूर्य खड़ा
मुसकुरा रहा था
8
फूल प्यारे हैं
ये सच है मगर !
लोभी हाथों से
ये सुरक्षित रहें
काँटे भी रख साथ
9
जो भी चुराया
हवा ने रात भर !
ओस के कण
गवाह बन गए
रात के हादसे के
10
जग में कोई
कभी रोने न पाए !
भूल से कभी
तुमसे ऐसा काम
कहीं भी न हो जाए
-0-
(शीघ्र प्रकाश्य संग्रह -‘शब्दों -सजी वेदना’ से साभार)
प्रस्तुति -डॉ हरदीप कौर सन्धु
5 टिप्पणियां:
बाती के बिना
दीया रहा उदास !
और वो बाती
करवटें बदल
सिसकी सारी रात
Bahut dard hai is haiku men jo koi aam aadmi nahi likh sakta,ek ajeeb sa khichaav hai ismen jo barbas hi kisi soch men dubo deta hai.
भूखे भी रहे
स्वाभिमान बचाया !
कुछ न माँगा
जो कुछ भी पाया है
श्रम से ही पाया है...
ye to jaise hamaare hi man ki baat khol kar rakh di ismen abhivyakti ki gahari pakad hai sabhi taanka gahari liye huye hain in dono ka to koi javab nahi lekhak ko meri hardik badhaai...
waah जो भी लिखना
हर बात को सच.
सच लिखना !
अंधेरे को उजाला
कभी नहीं लिखना
3
हर कदम
रुसवाइयाँ मिलीं !
लाँघ जाने को
हरेक सफ़र में
चौड़ी खाइयाँ मिलीं,............sabhi bahut acche hai 9 ,10 bhi bahut pasand aaye ..hardik badhai .
बाती के बिना
दीया रहा उदास !
और वो बाती
करवटें बदल
सिसकी सारी रात
sabhi tanka bahut sunder hain par yeh man ko choo gaya badhai
saadar,
amita kaundal
अलग अलग गहन भाव-अभिव्यक्ति, सभी ताँका बहुत अच्छे लगे, शुभकामनाएँ.
बहुत अच्छे ताँके हैं...बधाई...।
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