कृष्णा वर्मा (रिचमंडहिल), कनाडा
1
हिम कण से
शृंगार रजत हो
वसुंधरा का
आँचल हीरे- जड़े
सुनहरी किरणें।
2
2
चादर धरा पर
बिछी चाँदनी
चन्दा खिले आकाश
क्यों नहीं मेरे साथ।
आसमान से
गिरते हिम-कण
धुनी कपास
ऒढ़ रजाई सोई
धरा वर्ष के बाद
4
सूर्य निगोड़ा
तपिश दे इतनी
झुलसे धरा
बदरा ताने पट
श्यामल रंग ।
5
बदरा छाए
दौड़ दामिनी कौंधी
बजे नगाड़े
धरा पड़ी फुहार
सोंधी बहे बयार।
कौन रंगता
मोहक तितलियाँ
उकेरे चित्र
सज्जित मनोहारी
अनोखी कलाकारी।
7
जल बदरा
अनूठा सा संगम
मिलें बरसें
स्नेहिल छ्म-छ्म
छटा हो अनुपम।
-0-
11 टिप्पणियां:
सभी तांका मन को भाए....
"सूर्य निगोड़ा
तपिश दे इतनी
झुलसे धरा
बदरा ताने पट
श्यामल रंग ...अति सुंदर !
बधाई। डॉ सरस्वती माथुर
बहुत ही सुंदर तांका। तीसरा तांका तो अनुपम है। पाँचवें के बिंब भी अत्यंत सजीव हो मन मोह लेते हैं। बधाई कृष्णा वर्मा जी!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। हर्दीप जी को बधाई।
कृष्णा वर्मा जी को अपने इन खूबसूरत तांका के लिए मेरी बधाई...।
कृष्णा जी के तांका बहुत सुन्दर हैं. बधाई!
काव्य, सौन्दर्य और प्रकृति का अनूठा संगम हैं सभी ताँके...कृष्णा जी को बधाई !!
कृष्णा जी के तांका बहुत सुन्दर हैं. बधाई!
कौन रंगता
मोहक तितलियाँ
उकेरे चित्र
सज्जित मनोहारी
अनोखी कलाकारी।
prkrti ko bahut khubsurati se shabdon men ukera hai bahut2 badhai...
आप सबने इतना स्नेह दिया उसके लिए ह्रदय से आभार प्रकट करती हूँ।
कृष्णा वर्मा
सभी हाइकु बहुत मनभावन, शुभकामनाएं.
अप्रतिम ....बहुत ही सुन्दर ,मोहक ताँका ..बहुत बधाई कृष्णा जी !!
saadar
jyotsna sharma
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