गुरुवार, 16 जनवरी 2014

रूठ गयी कलियाँ

शशि पुरवार
1
क्यों मौसम ज़र्द हुआ
रूठ गयी कलियाँ
भौरों को दर्द हुआ  ॥
2
क्यों सूख रही डाली
चुभन भरी पाती
बाँच रहा है माली ।
3
तुमको कब था  रोका
सपनो में मिलना
अँखियों को , दो मौका
4
मैंने पी है हाला
कवियों का जीवन
गीतों की मधुशाला।
5
दिल कितना बेमानी
समझ नहीं पाता
मन है बहता पानी ।
6
अब आए ना चैना
दो पल ठहर ज़रा
छवि तकते है नैना ।
7
हमको तो पाना है
दो पल का जीवन
कब तुमने जाना है ।

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4 टिप्‍पणियां:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत खुबसूरत
एक से बढ़ कर एक

Pushpa mehra ने कहा…

kyon mausam jard hua,ruth gayi kaliyan , bhauron ko dard hua.
bahut sunder tanka hai.sabhi tanka achhe likhe hain.sashi ji apako badhai .
pushpa mehra

ज्योति-कलश ने कहा…

bahut sundar maahiyaa ....
मैंने पी है हाला
कवियों का जीवन
गीतों की मधुशाला।...बस नशा ही नशा ....काव्य रस का ...:)
बहुत बधाई शशि जी

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सुन्दर माहिया के लिए बहुत बधाई शशि जी...|