मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

838-निर्मलमना !


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
देह का धर्म
निभाया रात-दिन
हाथ क्या आया?
वासना बुझी नहीं
राख हो गए कर्म।
2
विश्वास छला
ईर्ष्या अनल  जगी
सब ही जला
फूटी आँखों न भाया
सच्चा प्यार किसी का।
3
जलाने चले
औरों के घर- द्वार
हजारों बार
जीभर वे मुस्काए
विद्रूप  हुआ रूप।
4
निर्मलमना !
गोमुख के जल- सा
पावन प्यार
समझेंगे वे कैसे
जो नालियों में डूबे?
5
शान्त- विमल
शरदेन्दु -सा भाल
नैनों की ज्योति
बहाती सुधा -धार
ओक से पिया प्यार।
-०-

12 टिप्‍पणियां:

Shashi Padha ने कहा…

नैनों की ज्योति
बहाती सुधा -धार
ओक से पिया प्यार। नयन से बहाना और ओक से पीना, दोनों ही अद्भुत बिम्ब | बहुत सुंदर | बधाई |

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut bhavpurn or hrdysparshi rachnayen hain bahu bahut badhai kamboj ji

Jyotsana pradeep ने कहा…


शान्त- विमल
शरदेन्दु -सा भाल
नैनों की ज्योति
बहाती सुधा -धार
ओक से पिया प्यार!
अति सुन्दर !!
बहुत सुन्दर तथा भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई आपको भैयाजी !!

Pushpa mehra ने कहा…


जलाने चले\ औरों के घर-द्वार\हजारों बार\ जी भर वे मुस्काए\विद्रूप हुआ रूप | मनुष्य की विकृत मानसिकता की सुंदर अभिव्यक्ति है |
पुष्पा मेहरा

नीलाम्बरा.com ने कहा…

बहुत ही मार्मिक, हार्दिक बधाई।

Krishna ने कहा…

बहुत हृदयस्पर्शी तांका...हार्दिक बधाई।

rameshwar kamboj ने कहा…

आप सबका बहुत -बहुत आभार !

Vibha Rashmi ने कहा…

जीवन को मिलते कड़वे कभी सच्चे अनुभव ।मर्मस्पर्शी प्रस्तुति। हार्दिक बधाई हिमांशु भाई ।

Unknown ने कहा…

अति सुंदर

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

एकदम दिल को छूने वाली पंक्तियाँ...| ढेरों बधाई...|

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सुंदर, भावपूर्ण एवं मार्मिक प्रस्तुति... आदरणीय भैया जी!

~सादर
अनिता ललित

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन , हार्दिक बधाई !