रश्मि विभा त्रिपाठी
1
तुम तक ही
मेरी मन- परिधि
कौन- सी विधि
मैं तुमको बिसारूँ
ये मन- प्राण वारूँ !
2
मन एकाकी
बनकर बैसाखी
तुम्हारा प्रेम
सहारा दे सहर्ष
सुनिश्चित उत्कर्ष !
3
वरदहस्त
धरा जो मेरे शीश
प्रफुल्ल प्राण
पा स्नेहिल आशीष
तुम्हीं हो मेरे ईश !
4
मेरी आँखों से
बहे जो पीड़ा-जल
मीलों दूर भी
हे प्रिय उसी पल
तुम होते विकल ।
5
तुम्हारा प्रेम
खरी दुपहरी में
सौम्य, शीतल
प्रिय! प्रेमिल छाँव
ले आए मन- गाँव ।
6
शब्द- सुमन
बरसाते सुगंध
श्रुति- दुआरे
पूर्णत: सुरभित
रोम- रोम हर्षित ।
7
श्रुति- दुआर
गुँजित- किलकार
हर्षित प्राण
आकण्ठ- मग्न- शीश
पा सौम्य- सुभाशीष ।
8
उर दुआर
सुन प्रिय पुकार
प्रफुल्लित हो
बिछा आसन- पाटी
स्वागत- गीत गाती ।
9
सारी थकन
मेरी हथेली धरो
विश्राम करो
अंक- आसन- पाटी
प्रिय मैं लोरी गाती ।
9 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर भावपूर्ण ताँका... हार्दिक बधाई विभा जी।
ख़ूबसूरत ताँका के लिए हार्दिक बधाई रश्मि विभा जी।
मुझे सृजन हेतु नवऊर्जा देती आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार आदरणीया ।
सादर 🙏🏻
मुझे प्रोत्साहन देती आपकी सुन्दर प्रतिक्रया का हृदय तल से आभार आदरणीया।
सादर 🙏🏻
हार्दिक आभार आदरणीया।
सादर
तुकांत शब्दों के प्रयोग से काव्य में प्रवाह और सौंदर्य की अभिवृद्धि हुई है। सुंदर सृजन। बधाई
अच्छे ताँका- बधाई।
उत्कृष्ट शब्दों के चयन ने ताँका को जीवंत कर दिया है।
बहुत सुंदर ताँका! हार्दिक बधाई विभा रश्मि जी!
~सादर
अनिता ललित
बहुत सुन्दर तांका हैं सभी...बहुत बधाई |
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