1-ऋता शेखर 'मधु'
1
लगता सन्त
ये अतिथि बसंत
सूनी वाटिका
हो गई सुरभित
हर्ष अपरिमित।
2
ओस की बूँदें
शतदल पर रुकीं
रुकी ही रहीं
सूरज सकुचाया
शुचिता मन भाई।
3
भोर सुहानी
खगवृंद चहके
पुष्प महके
जग गया संसार
हर्ष अपरम्पार।
4
कूकी कोयल
बच्चे भी दोहराएँ,
मधु मुस्कान
अधरों पर आई
कोयल दोहराई।
5
दूर क्षितिज
अवनि व अम्बर
कभी न मिले
मिली एक भूमिका
मोह की यवनिका ।
6
निश्चित क्रम
भोर से साँझ तक
जग में मेला
सूर्य चले अकेला
चाँद संग सितारे ।
7
मन हो दीप्त
दिखा देता है राह
नन्हा- सा दीप
मन जो बुझा रहे
सूर्य काम न आए।
8
साथी निष्ठुर
राह है अवरुद्ध
छाँट दो काँटे
जग से लड़ लेना
अहल्या न बनना।
9
भोर-लालिमा
चहकी बुलबुल
जगा है जग
चल पड़े कदम
कार्य है हमदम।
10
गुटरगूँ-गूँ
जुटी हैं सहेलियाँ
पुष्पित क्यारी
खुश रहें बेटियाँ
चहके जग सारा।
11
खाई ठोकर
हटाया न पाथर
बेबुनियाद
शिक्षा से लाभ नहीं
दूजों से गिला कैसा।
12
क्षमा का पाठ
पढ़ाने लगे सभी
खुद न पढ़ा
अनजानी ग़ल्तियाँ
बन जाती है सज़ा।|
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10 टिप्पणियां:
प्रकृति और नीति पर आधारित सुंदर ताँका। भावपक्ष भी दृढ़। सुंदर सृजन के लिए ऋता शेखर जी को बधाई
बहुत खूब। 🌹🌹🌹🙏🙏👍👍
प्रकृतिपरक व नीतिपरक उत्कृष्ट ताँका।
सुन्दर सृजन की हार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर 🙏🏻
बहुत सुन्दर तांका, मेरी बहुत बधाई ऋता दी
ज्ञान से भरपूर रचना के लिए हार्दिक बधाई ! बहुत उत्तम विचार हैं -श्याम -हिंदी चेतना
सुंदर तांका, बहुत बहुत बधाई!
गुटरगूँ-गूँ
जुटी हैं सहेलियाँ
पुष्पित क्यारी
खुश रहें बेटियाँ
चहके जग सारा।
भावपूर्ण ताँका सभी उत्कृष्ट हैं-बधाई।
वाह एक से बढ़कर एक,मन मुग्ध करते सुंदर ताँका।बधाई ऋता जी।
बहुत सुन्दर तांका... बधाई ऋता जी।
हमारी रचना को यहाँ पर स्थान देने के लिए बहुत आभार आदरणीय भैया एवं हरदीप जी। प्रोत्साहन हेतु सभी आदरणीय मित्रों का दिल से आभार, धन्यवाद।
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