1-जिंदगी की किताब!
रश्मि विभा त्रिपाठी
1
पढ़ रही हूँ
बेफ़िक्र होकर मैं
जिंदगी की किताब!
तुमने लिखे
इसके पन्नों पर
उम्मीदें और ख़्वाब!!
2
फीके पड़ते
चेहरे पर आई
चमक- दमक हो!
तुम्हारा प्यार
रंग लाया है, तुम-
दिल की धनक हो!!
3
पा लिए मैंने
प्यार के फूलों के जो
चटख सुर्ख़ रंग!
उड़ने लगा
मन तितलियों- सा
खुशबुओं के संग!!
4
जाँचकर कि
मुझपर क्या बीती
तूने अकसीर दी!
दुआ का काढ़ा
मैं घूँट- घूँट पीती
तभी चैन से जीती!!
5
रोज लगाई
अपनों ने ही आग
मेरी खुशी जलाई!
सिर्फ तुम्हीं से
बचा- खुचा जो भी है
ये जीवन का राग!!
6
साथ हमारा
आखिरी दम तक
कोई कुछ भी करे!
एक तुम ही
जिसने टूटी हुई
साँसों में सुर भरे!!
7
मुझे हमेशा
दी है शक्ति अपार
जग जीत लेने की!
तुम्हारा प्यार
प्यार नहीं, ये मेरे
प्राणों का है आधार!!
8
पिघला देता
उदासी की आँच को
तुम्हारा सच्चा नेह!
जिस तरह
तपती धरा पर
बरस जाता मेह!!
9
तुमसे बने
जो सपने सशक्त
हो गई अनुरक्त!
बिठाकरके
पलकों पर तुम्हें
करूँ आभार व्यक्त!!
10
झनझनाए
आज बर्षों के बाद
हृदतंत्री के तार!
नीरवता में
गाता तुम्हारा प्यार
प्यारा राग- मल्हार।
11
तुमसे ही है
यह सुख- साम्राज्य
कैसे चुकाऊँ मोल?
कि मेरे लिए
अपना आराम भी
तुमने किया त्याज्य!!
12
दुआ से चुने
मेरी राह के काँटे
जब- तब गड़ते!
तुम्हें पाकर
जमीन पर मेरे
पाँव नहीं पड़ते!!
13
खूँद- खूँदके
मेरे ख़्वाबों के पेड़
उसने किए ठूँठ
साथी नहीं था
सचमुच ही था वो
रेगिस्तान का ऊँट।
-0-
2- यादों
के साये
रश्मि विभा त्रिपाठी
1
मेरे मन में
तुम्हारी सच्ची प्रीति
ठीक वैसे ही बसी!
ज्यों खींच लेती
अनायास किसी को
छोटे बच्चे की हँसी।
2
मेरे नीड़ को
जब उजाड़ा गया
तुझी ने खाई दया!
तेरे बल पे
फुदकती फिरती
मैं बनकर बया!!!
3
संग चलते
तेरी यादों के साये
मुझे बड़े भाते हैं!
चूमके माथा
फिक्र की लकीरों को
चुराके ले जाते हैं!!
4
सूनी आँखों के
हालात पर तुम
फफककर रोए!
तुम्हीं ने इन्हें
आबाद करने को
ख़्वाबों के पाँव धोए!!
5
मेरे पाँव जो
अँधेरे रास्तों पर
ठिठक- से जाते हैं!
प्यार का दीप
हथेली पे धरके
आप आ ही जाते हैं!!
6
बेशक दूर
एक- दूजे का हाथ
मगर थामकर!
चलते हम
तय करने साथ
ये ख़्वाबों का सफर।
7
तुम्हारी बातें
फूलों की है बहार
सुनके झूम जाती!
सच मान लो
तुम्हीं से आबाद है
ख़ुशबू का शहर!!
8
सफर में ये
सर पे धूप लिए
चल पा रही हूँ जो!
हर राह पे
रहा है संग- संग
साये की मानिंद वो!!
9
तुम्हारा हाथ
हकीम- सा हो गया
सर पर जो धरा!
अकसीर ये
पाते ही दुख- दर्द
छूमंतर हो गया।
10
जकड़ लेती
जब उदासी मुझे
बेबात, बेवजह!
तो खोल देते
न जाने कैसे तुम
वो दिल की गिरह?
11
भरे दुख में
किसके दम पर
गा पाती हूँ मैं राग?
इसी बात पे
सारे श्रोता तुम्हारा
ढूँढ रहे सुराग!!
-0-
7 टिप्पणियां:
वाह, प्रेम की राह पर निकले खूबसूरत सेदोका अपनी भावनात्मक अभिव्यक्ति से त्रिवेणी के शिल्प को भी आकर्षक बना रहे हैं ।रश्मि विभा त्रिपाठी के साथ सम्पादक द्वय को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
प्रेम की बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। उत्कृष्ट सृजन के लिए हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
बहुत उन्दा भावपूर्ण सेदोका...हार्दिक बधाई रश्मि जी।
भरे दुख में/किसके दम पर/गा पाती हूँ मैं राग?/इसी बात पे/सारे श्रोता तुम्हारा/ढूँढ रहे सुराग!!...क्या बात है..एक से बढ़कर एक सेदोका।भाव जगत की यात्रा कराने में रश्मि जी सिद्धहस्त हैं।
सेदोका प्रकाशित करने हेतु आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।
आदरणीया सुदर्शन रत्नाकर दीदी, कृष्णा दीदी, आदरणीय शिव जी श्रीवास्तव जी, भीकम सिंह जी की हृदय तल से आभारी हूँ।
आप सभी की टिप्पणी सदैव प्रोत्साहन देती है।
सादर
आपका सुंदर सृजन हमेशा मुझे प्रेरणा देता है।
आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
सादर
भावपूर्ण सेदोका के लिए बहुत बहुत बधाई
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